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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लाभप्रद उद्योगमें अपना समय देता है; क्योंकि वह कोई यज्ञार्थ कर्म नहीं करता और इसीलिए देशके गरीबोंके साथ उसका तादात्म्य नहीं होता।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत देवेन्द्रनाथ मैत्र

२५, बाराकुठी रोड
खागरा

जिला मुर्शिदाबाद

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११२२१) को माइक्रोफिल्मसे।

२९६. पत्र : प्रभाशंकर पट्टणीको

आश्रम
साबरमती
शनिवार, आषाढ़ बदी १४ [ ७ अगस्त, १९२६][१]

सुज्ञ भाईश्री,

आपका पत्र मिला। यदि आप दूधको कीटाणुरहित करवानेके बाद उसे बर्फकी कोठरीमें रखवा देंगे तो मुझे विश्वास है कि वह खराब नहीं होगा। फिर रास्ते में बन्दरगाह तो पड़ेंगे ही। हर बन्दरगाहमें ताजा दूध मँगाया जा सकता है। जहाजवाले दो अथवा तीन बकरियाँ आसानीसे रख लेते हैं। कुछ जहाजोंमें गाय भी रख ली जाती है। जब मेरे फिनलैंड जानेकी बात चली थी[२] तब बकरियाँ साथ ले जानेकी बात भी हुई थी। इसके अतिरिक्त नेसल कम्पनीका मीठा और सादा, दोनों तरहका गाढ़ा किया हुआ दूध बन्द डिब्बोंमें मिलता है। उसपर भी निर्वाह किया जा सकता है; अन्तमें हॉलिक्सका सूखा दूध तो है ही। यह चूर्णके रूपमें आता है और दूधको सारी आवश्यकता पूरी करता है। इस सबके बाद भी यदि बकरी अकस्मात् ही मर जाये, होलिक्सके चूर्णकी शीशी टूट जाये, नेसलके गाढ़े दूधका डिब्बा खराब निकल जाये तो इसमें सन्देह नहीं कि उस दिन आप केवल फलोंपर ही रह सकते हैं। यदि आप इतना नियम पाल सकें तो मुझे कोई शक नहीं है कि आपकी तन्दुरुस्ती अच्छी रहेगी। अन्य बातें तो यदि [ बम्बई ] जाते हुए आप मुझसे मिलें तो ही हो सकती हैं।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू०३२०६) की फोटो-नकल तथा जी० एन० ५८९२ से भी।
सौजन्य : महेश पट्टणी
  1. डाकको मुहरसे।
  2. अप्रैल, १९२६ में गांधीजीको फिनलैंडसे अगस्त, १९२६ के विश्व विद्यार्थी सम्मेलन में भाग लेने का निमन्त्रण मिला था। उन्होंने पहले इसे स्वीकार कर लिया था, किन्तु बादमें जून, १९२६ में अपनी अस्वीकृति सूचित कर दी थी।