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२९०. पत्र : गंगाबहनको

आश्रम
साबरमती
६ अगस्त, १९२६

श्रीमती गंगाबहन

द्वारा आचार्य गिडवानी

वृन्दावन
प्रिय बहन,

देखता हूँ, कि तुमने गुजराती तो नहीं, अंग्रेजी लिखनी शुरू कर दी है। तुम कहती हो, 'मेरे पति छोटे-छोटे बच्चोंको पढ़ानेका काम कैसे कर सकते हैं?' तुम ऐसा क्यों कहती हो? क्या बच्चोंको पढ़ाना गौरवकी बात नहीं है ? इस समय जो गन्दा और अस्वास्थ्यकर है, तुम उसे स्वच्छ और स्वास्थ्यकर बना दोगी। अहमदाबादसे तुम्हारे लगावकी बात मेरी समझमें आती है। पर मैं नहीं चाहता कि तुम वहाँके संघर्षसे हाथ खींचो। इतनी चेतावनीके बाद मैं कह सकता हूँ कि तुम इसे अपना घर समझो और जब चाहो तब आओ।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११२७०) की माइक्रोफिल्मसे।

२९१. पत्र : आ० टे० गिडवानीको

आश्रम

साबरमती

६ अगस्त, १९२६
प्रिय गिडवानी,

आपका पत्र मिला। तकुए भी मिल चुके हैं। तकुए अच्छे नहीं हैं। थोड़ा भी दबाव पड़नेपर उनके सिरे मुड़ जाते हैं। वे इतने कमजोर हैं कि सुत भरनेमें ही गरम हो जाते हैं और थोड़ी-थोड़ी देर बाद उन्हें ठंडा करना पड़ता है। मैं समझता हूँ कि अभी आपको नमूनेके तकुए नहीं मिले हैं। अगर विद्यालयके कारखानेमें इस तरहके तकुए तैयार होने लगेंगे तो वह एक बहुत बड़ा काम होगा। कई हजारकी माँग आई पड़ी है। आपने जो नमूने भेजे हैं, वे तकुए भी जैसे चाहिए वैसे नहीं हैं। अगर तकुआ बिलकुल ठीक न हो, तो वह घूमते समय काँपता है। तकुएका काँपना अच्छा सूत कातने में बहुत बड़ी बाधा है।