२८६. पत्र : बच्छराज जमनालालको
आश्रम
साबरमती
आषाढ़ बदी १२, १९८२ [५ अगस्त, १९२६ ]
आपका पत्र और साथमें ५,००० रुपयेका चेक भी मिला। उसकी रसीद इसके साथ है। आपने रंगूनसे आई रकमकी पहुँचका जो मसविदा भेजा है, वह ठीक है। उसी तरहकी पहुँच लिखकर भेज दें। मसविदा वापस भेजता हूँ।
आप 'यंग इंडिया' में प्रकाशनार्थ जो टिप्पणी लिखें, उसमें मुझे भेजी हुई सूची भी शामिल कर लें।
मोहनदासके वन्देमातरम्
कालबादेवी, बम्बई
गुजराती पत्र (एस० एन० १२२३९) की माइक्रोफिल्मसे।
२८७. पत्र : प्रद्युम्नराय वी० शुक्लको
आश्रम
५ अगस्त, १९२६
आपका पत्र मिला। मेरी स्थिति कुछ दयनीय है। किसीको यह वचन देना कि उसके पत्रको कोई भी न देखेगा लगभग असम्भव है। मेरा पत्र-व्यवहार इतना विस्तृत है कि मैं ऐसा वचन नहीं दे सकता। इसलिए इतना ही कहा जा सकता है कि मेरे पत्रोंको जो सँभालते हैं उनके अलावा कोई दूसरा उन्हें नहीं देखेगा; क्योंकि मैं इस तरहके पत्रोंको तुरन्त फाड़ देता हूँ। यदि ऐसा न करूँ तो मैं इतना भी न कह पाऊँ। अपने अधिकांश पत्र तो मुझे दूसरोंसे ही लिखवाने पड़ते हैं।
मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्
वाडेकर बिल्डिंग, कमरा सं० ३१
गुजराती पत्र (एस० एन० १९९४१) की माइक्रोफिल्मसे।