पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/३११

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२८४. विद्यालयों में कताई नीचे बनारस नगरपालिकाकी शालाओंमें कताईका काम किस प्रकार चल रहा है, उसका विवरण दिया जा रहा है : विद्यालयोंकी संख्या शिक्षकोंकी संख्या विद्यार्थियोंकी संख्या जिन्हें कातना और धुनना आता है उन शिक्षकोंकी संख्या जिन्होंने कातना और धुनना सीख लिया है उन विद्यार्थियोंकी संख्या प्रत्येक पाठशालामें चरखोंकी औसत संख्या आजकल जो सूत औसतन प्रतिमास काता जाता है सूतका औसत अंक उस सूतसे बुने गये कपड़ेकी लम्बाई शुरूसे आजतक काता गया कुल सूत उक्त पाठशालाओंमें कताई शुरू करनेका वर्ष अबतक जो खर्च हुआ है वह इस प्रकार है: (क) कपास (ख) चखें (ग) चर्खोकी मरम्मत (घ) फुटकर खर्च (च) (छ) निरीक्षण अन्य आवश्यक खर्च ७४७) १५००) [ अंग्रेजीसे ] यंग इंडिया, ५-८-१९२६ ५०) ६३) प्रतिमास ४०) प्रतिमास ३९) प्रतिमास ३४ १७५ ४,००० सभी ५७८ १० ३० सेर १० नं० १,००० गज ४ मन १९२४ कताईका शिक्षण शुरू करनेके समयसे आज तकका काता हुआ सूत बहुत अधिक नहीं कहा जा सकता। जहाँ फी स्कूल १० चरखे हैं वहाँ अधिक काते जानेकी आशा नहीं की जा सकती, क्योंकि यह स्पष्ट है कि चरखोंकी यह संख्या इतनी कम है कि पाठशालाके सब बालक प्रतिदिन उनका उपयोग नहीं कर सकते। इसलिए मैं तो नगरपालिकासे सिफारिश करना चाहता कि वह स्कूलोंमें तकलीका प्रवेश कराये । यदि ऐसा किया जायेगा तो परिणाम यह होगा कि खर्चको बिना विशेष रूपसे बढ़ाये तिगुना सूत तैयार होने लगेगा । किसी प्रकारकी मरम्मतकी जरूरत न रहेगी और अन्य सभी प्रकारका खर्च बच जायेगा। विद्यालयके विद्यार्थियोंका प्रत्येक क्षण काममें आ सकेगा; और आमदनीमें उसी हिसाबसे बढ़ोतरी हो जायेगी। कताईको स्कूलोंमें दाखिल करनेका काम बनारस नगरपालिकाने सबसे पहले शुरू किया है। अनुभवसे यह बात सिद्ध हुई है कि विद्यालयोंकी हदतक तो तकलीका उपयोग बहुत ही अच्छा है। मैं आशा करता हूँ कि यह नगरपालिका निस्संकोच इतना परिवर्तन कर लेगी । Gandhi Heritage Portal