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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्होंने पिछली दो जन-गणनाओंके आँकड़े भी दिये हैं। यह संख्या उन दो गणनाओंमें प्राप्त आँकड़ोंसे कुछ अधिक ही है। दूसरे सम्प्रदायोंकी विधवाओंकी भी संख्या दी गई है। उससे तो इसका और भी अधिक पता चलता है कि हिन्दू बाल-विधवाओंपर कितना अत्याचार किया गया है। धर्मके नामपर हम गोरक्षाके लिए शोर करते हैं, परन्तु मनुष्य रूपमें इन बाल-विधवा रूपी गायोंकी हम रक्षा नहीं करते। धर्मके लिए हम जोर-जबर्दस्ती पसन्द नहीं भी करेंगे[१] परन्तु धर्मके ही नामपर हम ३ लाख ऐसी बाल-विधवाओंको वैधव्य भोगनेपर विवश करते हैं जिन्होंने विवाह-संस्कारका अर्थतक नहीं समझा है। छोटी बच्चियोंको जबर्दस्ती विधवा बनाकर रखना एक पाप है और हम उसका कड़वा फल बराबर चख रहे हैं। यदि हमारी आत्मा कुण्ठित न होती तो वैधव्यकी बात तो दूर, १५ वर्षसे पहले हम विवाह ही न होने देते और इनके विषयमें यह कहते कि इन तीन लाख लड़कियोंका तो धार्मिक दृष्टिसे विवाह कभी हुआ ही नहीं। इस प्रकारके वैधव्यका विधान किसी भी शास्त्रमें नहीं है। यदि किसी स्त्रीने अपने पतिके प्रेमका अनुभव कर लिया हो और तब स्वेच्छासे वैधव्य स्वीकार किया हो तो वैधव्यसे उसका जीवन पवित्र होता है और चमक उठता है, घर पावन बन जाता है और धर्मकी भी उन्नति होती है। पर रूढ़िसे जबरन लादा हुआ वैधव्य असह्य हो जाता है और परिणामत: गुप्त पापसे अपवित्रता फैलती है और धर्मकी अवनति होती है।

५० वर्षके या उससे भी अधिक उम्रके बूढ़े और रोगी व्यक्तिको इन छोटी बच्चियोंको पत्नी बनाते, बल्कि पत्नीके रूपमें एकके बाद दूसरीको खरीदते हुए देखकर भी क्या हमें यह वैधव्य असह्य नहीं मालूम होता? जबतक हमारे यहाँ हजारों विधवाएँ पड़ी हुई हैं, तबतक हम मानो दलदलपर चल रहे हैं, और न जाने कब उसके भीतर धँस जायेंगे। यदि हमें पवित्र बनना है, यदि हमें हिन्दू धर्मकी रक्षा करनी है तो लादे हुए वैधव्यके इस विषसे मुक्त होना ही होगा। जिनके यहाँ बाल-विधवाएँ हैं, वे पूरी हिम्मत करके अपनी बाल-विधवाओंका पुनर्विवाह नहीं, बल्कि ठीक-ठीक विवाह कर दें। पुनर्विवाह तो नहीं है, क्योंकि पहले उनका सच्चा विवाह कभी हुआ ही नहीं था।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ५-८-१९२६
  1. यहाँ मूल अंग्रेजीमें मुद्रणकी भूल सुधारकर अनुवाद किया गया है। देखिए “भूल-सुधार", १२-८-१९२६ ।