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२८३. थोपा हुआ वैधव्य

सर गंगारामने हिन्दुस्तानमें और अलग-अलग प्रान्तोंमें विधवाओंकी संख्याके आँकड़े प्रकाशित किये हैं। ये आंकड़े कामके हैं और प्रत्येक सुधारकके हाथमें रहने चाहिए।

सर गंगारामने राष्ट्रीय उन्नतिका जो क्रम बतलाया है, उससे कम ही लोग सहमत होंगे। उनके मतानुसार यह क्रम इस प्रकार है :

१. सामाजिक सुधार
२. आर्थिक सुधार
३. स्वराज्य या राजनीतिक स्वातन्त्र्य।

सर गंगाराम-जैसे पहलेके अन्य उत्साही समाज-सुधा हू-बहू ऐसा ही नहीं था। रानडे, गोखले, चन्दावरकर स्वराज्यको समाज-सुधार जितना महत्त्व देते थे। लोकमान्य तिलक भी समाज-सुधारके मामले में किसीसे कम उत्साही नहीं थे। परन्तु उन्होंने या उनसे पहलेके लोगोंने सभी प्रकारके सुधारोंका साथ-साथ चलना उचित और आवश्यक माना था। सच पूछो तो लोकमान्य और गोखले तो राजनीतिक सुधार-को अन्य सभी सुधारोंसे अधिक आवश्यक मानते थे। उनका मत था कि हमारी राजनीतिक गुलामीने हमें और किसी कामके लायक ही नहीं रख छोड़ा है।

बात यह है कि राजनीतिक स्वतन्त्रताका अर्थ होता है जन-जागृति। राष्ट्रीय प्रगतिके किसी भी अंगपर इसका प्रभाव पड़े बिना रह नहीं सकता। उन्नति मात्रका अर्थ जागृति ही है। एक बार जाग्रत हो जानेपर केवल किसी एक ही क्षेत्रमें सुधार करके ही राष्ट्रका चुप बैठना असम्भव है। इसलिए सभी आन्दोलनोंको साथ-साथ चलते रहना चाहिए।

सुधारोंके क्रमको लेकर सर गंगारामके साथ बहसमें पड़नेकी जरूरत नहीं है।[१] हम राजनीतिक या आर्थिक उद्धारके लिए उनके बतलाये हुए उपायको भले ही ठीक न मानें परन्तु सामाजिक सुधारके मामले में सर गंगारामके उत्साहकी तो प्रशंसा ही करनी पड़ेगी। जो आँकड़े उन्होंने दिये हैं वे सचमुच ही भयंकर हैं। वे पूछते हैं कि "इन आँकड़ोंको देखकर, जिनसे बाल-विवाह और थोपे हुए वैधव्यसे फैली हुई दुर्दशाका पता लगता है, कौन नहीं रो पड़ेगा ? १९२१ की जनगणनाके अनुसार हिन्दू विधवाओंकी संख्याके आँकड़े ये हैं : ५ वर्ष तककी विधवाएँ ५-१०" १०-१५, " 23 ११,८९२ ८५,०३७ २,३२,१४७ ३,२९,०७६ ३१-१८

"

  1. यहाँ मूल अंग्रेजीमें मुद्रणकी भूल सुधारकर अनुवाद किया गया है। देखिए "भूल-सुधार",१२-८-१९२६ ।