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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कोई असाध्य कार्य नहीं है। वे विवाहितोंको बताते हैं कि दाम्पत्य जीवनके नियमोंका पालन किया जाना चाहिए और स्वार्थके विचारोंको, फिर वे अपने-आपमें कितने ही न्याययुक्त क्यों न लगें, नैतिक उदारताको उच्चतर माँगोंके आड़े कभी नहीं आने देना चाहिए।

फॉस्टर लिखते हैं :

स्वेच्छापूर्वक लिये गये ब्रह्मचर्य-व्रतसे विवाहका महत्व कदापि कम नहीं होता; बल्कि उससे तो दाम्पत्य सम्बन्धको पवित्रताको जबर्दस्त बल ही मिलता है; क्योंकि विवाह उसकी अपनी प्रकृतिसे उसकी मुक्तिका एक द्वार खोल देता है। क्षणिक वासनाओं और विकारोंके हमलेके समय वह अन्तरात्माकी आवाज बनकर उसकी सद्वृत्तियोंको बल पहुँचाता है। ब्रह्मचर्य एक प्रकारसे विवाह-सम्बन्धोंकी रक्षा भी करता है; क्योंकि ब्रह्मचर्यके कारण विवाहित लोग इस मान्यतासे इनकार कर देते हैं कि मनुष्य अपने पारस्परिक सम्बन्धोंमें कुछ अज्ञात प्राकृतिक शक्तियोंका निरा दास ही है; और इस प्रकार वे निर्भय बन जाते हैं तथा प्राकृतिक शक्तियों और आवेगोंको अपने वशमें कर सकनेवाले, मुक्त प्राणियोंकी तरह आचरण करने में समर्थ हो जाते हैं। आजीवन ब्रह्मचर्यको खिल्ली उड़ानेवाले और इसे अस्वाभाविक या असाध्य बतलानेवाले लोग वास्तव-में यही नहीं समझते कि वे कर क्या रहे हैं। वे नहीं समझ पाते कि जिस तरहके तर्क वे दे रहे हैं उनसे तो वेश्यावृत्ति और बहुपत्नी-प्रथा सर्वथा अनिवार्य सिद्ध होते हैं। यदि प्राकृतिक या स्वभावगत आवेगोंको अदमनीय मान लिया जाये तो फिर हम विवाहित लोगोंसे पवित्रताके साथ जीवन व्यतीत करनेकी आशा कैसे कर सकते हैं? और फिर वे यह भी भूल जाते हैं कि विवाहितोंमें किसी लम्बी बीमारी या मजबूरीके कारण कई महीनों या वर्षों और यहाँतक कि आजीवन ब्रह्मचर्यका पालन करनेपर बाध्य जीवन-साथियोंकी संख्या भी कम नहीं होती। अन्य कारणोंको छोड़ दें तो भी इसी एक कारण-से सच्चे किस्मके एकपत्नीव्रतके भाग्यका दारोमदार इसी बातपर है कि हम ब्रह्मचर्यको कितनी-क्या प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ५-८-१९२६