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अनीतिकी राहपर—६

अलग-थलग, असम्बद्ध आध्यात्मिक साधना तो महज एक हवाई कल्पना ही है। 'यंगइंडिया' के लेख हर हफ्ते जिन युवक-युवतियोंको सम्बोधित करके लिखे जाते हैं, उनको समझ लेना चाहिए कि अगर वे सामाजिक वातावरणको शुद्ध बनाना और अपनी कमजोरी दूर करना चाहते हों तो ब्रह्मचर्यका पालन उनका परम कर्त्तव्य है और यह उतना कठिन नहीं जितना कि कुछ लोग बतलाते हैं।

श्री ब्यूरो आगे कहते हैं:

आधुनिक समाजशास्त्रकी सहायतासे मनुष्य के आचार-व्यवहारके विकास-क्रमको जितने ही अधिक सुसम्बद्ध ढंगसे समझा जा रहा है और उसका सुनियोजित अध्ययन समाजकी वस्तुस्थितिको जितनी गहराईसे प्रकाशमें ला रहा है, समाजके सामने ब्रह्मचर्यका महत्व उतना ही अधिक बढ़ता जा रहा है और इन्द्रियोंको संयमित करनेमें आजीवन ब्रह्मचर्यके दानका मूल्य उतना ही निखर कर सामने आता जा रहा है।··· यदि समाजके बहुसंख्यक लोगों एक बहुत ही बड़े समुदाय— के लिए विवाहित जीवन हो जीवनको सामान्य अवस्था हो, तो इसका यह अर्थकदापि नहीं है कि सभीका विवाह करना ठीक है या आवश्यक है। हमने अभी जिन असाधारण ध्येयोंका उल्लेख किया था, जो उनके कारण ब्रह्मचर्य-व्रत लेते हैं, उन्हें छोड़ दें तो भी आजन्म अविवाहित रहनेवाले लोगोंकी तीन श्रेणियाँ तो ऐसी हैं ही जिनको विवाहित होनेका कर्त्तव्य पूरा न करनेके लिए कोई दोष नहीं दे सकता .. वे स्त्री-पुरुष जो अपने पेशेकी किसी बाध्यता या हाथकी तंगीके कारण विवाहको टालते जाते हैं; वे लोग जो मनपसन्द वर-वधू न पानेके कारण विवश होकर विवाह नहीं करते और वे जो भावी सन्तान या पत्नीको अपने किसी शरीरगत रोग या दोषसे बचानके खयालसे समझते हैं कि उनको विवाह करनेका विचार तक नहीं करना चाहिए। क्या इससे स्पष्ट नहीं हो जाता कि इन लोगों द्वारा किया जानेवाला निग्रह उनके अपने सुख और समाज दोनोंके ही हितकी दृष्टिसे आवश्यक होता है? और क्या इस बातका अहसास कि उनके अतिरिक्त कुछ और लोग भी हैं जो शरीर और मनसे कहीं अधिक क्षमताशील होते हुए भी आजीवन ब्रह्मचर्यका दृढ़ संकल्प कर चुके हैं, उनके इस त्यागको अधिक सुगम और अधिक प्रसन्नतापूर्ण नहीं बना देता? भगवान, भगवद्भजन और आत्मिक साधनाको अपना जीवन समर्पित करनेवाले ये स्वैच्छिक ब्रह्मचारी लोग कहते हैं कि ब्रह्मचर्यका जीवन, हमारी दृष्टिमें, जीवनकी निम्नतर नहीं बल्कि उच्चतर अवस्था है, जिसमें मनुष्य अपनी पशु-प्रवृत्ति या सहज प्रेरणापर संकल्पके पूर्ण प्रभुत्वकी घोषणा करता है।

लेखक आगे कहता है :

आजीवन ब्रह्मचर्यके उदाहरण अपरिपक्व अवस्थाके नवयुवक और नवयुवतियोंके सामने यह सिद्ध कर देते हैं कि तरुणाईको पवित्रतापूर्ण ढंगसे जीना