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२८१. कर्नाटकमें खादी

श्रीयुत गंगाधरराव देशपाण्डेने अपने खादीके कार्यके सम्बन्धमें एक पत्र भेजा है, नीचे उसका सार दिया जा रहा है।[१]

पैसा लेकर सूत कातनेवालोंको सुतकी किस्म सुधारनेके लिए राजी करने और बुनकरोंको हाथकते सूतका कपड़ा बुननेके लिए तैयार करनेकी समस्याको लेकर सभी जगह कठिनाई पैदा हो रही है। इसका केवल एक ही उपाय है कि धैर्य और लगनसे काम लिया जाये और सूतकी किस्म सुधारनेके तरीकोंका विज्ञानसम्मत ज्ञान प्राप्त किया जाये। यदि सूत एकसार, मजबूत और ठीक तरहसे अटेरा हुआ हो तो बुनकर जल्दी ही हाथकते सूतका कपड़ा बुनने लगेंगे। उनके पास देशहितकी बात सोचनेका वक्त नहीं है। उनका सारा समय पेटके गड्ढेको भरनेकी चिन्तामें चला जाता है। इसलिए वे आसानसे आसान काम ढूंढ़ते हैं । और जबतक हम हाथकते सूतसे कपड़ा बुनना मिलके कते सूतसे बुननेके बराबर आसान न बना दें तबतक हमें यह आशा नहीं करनी चाहिए कि पर्याप्त संख्या में बुनकर हाथकते सूतका प्रयोग करेंगे। इसलिए मुख्य बात यह है कि हाथकते सूतकी किस्म सुधारी जाये और यह बात केवल तभी सम्भव है जब हमारे पास सूत कातनेमें विशेषज्ञ स्वयंसेवकोंकी एक सेना हो। ये विशेषज्ञ ऐसे होने चाहिए जिन्हें सूत कातनेका पूरा ज्ञान हो, जो अच्छे चरखे और बुरे चरखेका अन्तर जानते हों और वे जो उन सूत कातनेवालोंके पास जिन्हें पेटभर खानेको नहीं जुटता, सहानुभूतिसे प्रेरित होकर जायें, उन्हें धीरजसे समझायें और अन्तमें उनको इतना प्रभावित कर सकें कि वे उनसे अपने चरखे सुधरवा लें। तभी वे उन्हें अधिक बारीक, अधिक मजबूत और अधिक एक-सा सूत कातनेका तरीका समझा सकेंगे। यह असम्भव नहीं है; लेकिन है कठिनाई और विस्तार क्षेत्रकी दृष्टिसे यह राष्ट्रके लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण काम बन जाता है। इसका लाभ तुरन्त मिलता है इस कारण यह जल्दी सम्पन्न किया जा सकता है, इसके लिए किस बड़ी पूंजीकी जरूरत भी नहीं है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ५-८-१९२६
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रमें बेलगावसे १८ मील दूरके एक केन्द्रमें खादी कायँकी उन्नतिकी तफसील थी। केन्द्र में खेतिहर लोग अवकाशके समय कताई-बुनाई करते थे।