पूछनेका निश्चय किया है। यदि उससे समय बचा तो सम्भव है, मैं उन्हें 'बाइबिल'– का नया करार पढ़ाऊँ। एक शनिवारको तो एक घण्टे में पूछे गये प्रश्नोंके पूरे उत्तर भी नहीं दिये जा सके। इसके बाद अब देखें क्या होता है। मैं यह जरूर चाहता हूँ कि विद्यार्थी धार्मिक चिन्तन-मनन करें। इसके लिए जो कुछ भी प्रयास किया जा सकता है, किया जा रहा है। विद्यापीठके कार्य-संचालनके लिए जो समिति बनाई गई है, उसकी रिपोर्ट कल ही मेरे पास आई है । अब मैं सोच रहा हूँ कि उसका क्या करूँ। बहुत करके तो वह जल्दी ही प्रकाशित कर दी जायेगी।[१] 'समालोचक'[२] के लिए मैं ऐसा क्या लिखूं जिससे आपको और आपके पाठकोंको सन्तोष मिले? मैं तो जो-कुछ लिखूंगा वह चरखेके ही विषयमें होगा। और अधिक कुछ हुआ तो अन्त्यजोंके सम्बन्धमें लिखूंगा । इस समय आप ऐसे लेखोंका क्या करेंगे? ये बेचारे अन्त्यज घोंघेकी तरह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं; किन्तु एक दिन जब ये "बेचारे" न रहेंगे तब आप मुझसे माँगेंगे तो ठीक होगा।
डा० पाई बिल्डिंग
सैंडहर्स्ट रोड
गुजराती प्रति (एस० एन० १२२३७) की फोटो-नकलसे।
२८०. पत्र : राधाकृष्ण बजाजको
४ अगस्त, १९२६
तुम्हारा खत मिला है। हि० मु०के बारेमें में एक ही उत्तर दे सकता हूँ। हर तरह से हिंदु दुःख ही बरदास करें। इसका यह अर्थ नहीं है कि धर्मका त्याग करें। परन्तु शुद्ध धर्मका पालन करनेमें जो दुःख आवे उसको सहन करें जितना समय तुम्हारा बचता रहे उसमें चरखा चलाते रहियो।
बापूके आ०
सीकर
मूल पत्र (एस० एन० १९९४०) की माइक्रोफिल्मसे।