पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/३००

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२७७. पत्र : प्रभाशंकर पट्टणीको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, आषाढ़ बदी ११, [४ अगस्त, १९२६][१]

सुज्ञ भाईश्री,

नानाभाईके हाथ भेजा आपका पत्र मिला। यदि आप केवल दूधपर रह सकें तो जरूर रहें। परन्तु दूध ताजा और बिना गर्म किया हुआ होना चाहिए। मैं तो यह प्रयोग जेलमें कर चुका हूँ। मुझे सिर्फ दूधपर रहनेमें कोई कठिनाई नहीं हुई थी। किन्तु मेरा पेट ३० वर्षोंसे फलोंका अभ्यासी हो गया था । इस कारण मेरा वजन पखवारे-भरमें ही तीन पौंड कम हो गया था और बादमें इसलिए मुझे फिरसे फल लेना शुरू करना पड़ा था। यदि आपको फलोंकी आवश्यकता न हो और औषध लिये बिना दस्त साफ होता हो तो आप केवल दूधपर रहें।

आपने जो पुस्तकें वापस कीं, वे मिल गईं हैं। मैंने तो आपको लिखा था कि पुस्तकें पढ़नेके बाद लौटाएँ। मेरा आग्रह है कि आप इंग्लैंड जायें तब भी अपने आहारमें कोई परिवर्तन न करें। मेरा विश्वास तो यह है कि दूध और हजम होने लायक फलोंपर रहनेसे आपका कायाकल्प हो जायेगा। इंग्लैंड जानेसे पहले कुछ दिन यहाँ बिता सकें तो जरूर आयें। यह मैं जानता हूँ कि आप दौड़-धूप किये बिना नहीं रह सकते; और आपके कामके लिए तो यह अनिवार्य भी है। कांग्रेसके अध्यक्षके विषयमें आपका सुझाव ठीक ही है; परन्तु उसमें कई उलझने हैं। में इस समय किसी भी मामलेमें नहीं पड़ रहा हूँ। किन्तु यहाँ बैठे-बैठे सुझाव तो दे ही सकता हूँ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

सर प्रभाशंकर पट्टणी

अनन्तवाड़ी

भावनगर
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३२०५) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य : महेश पट्टणी
  1. दो पुस्तकोंको लौटानेके उल्लेखसे यह पत्र २७-७-२६ को प्रभाशंकर पट्टणीको लिखे गये पत्रके पश्चात् लिखा गया लगता है।