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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर दें, इस पाखण्डसे मुक्त हो जायें और पढ़नेकी तीव्र इच्छा रखनेवाले विद्यार्थियोंको ही पढ़ाएँ, फिर वे चाहे दो-चार ही क्यों न हों। कुछ शिक्षक मधुकरी माँगकर लायें और बाकी अन्य फलदायी कार्योंमें लगें। साँपके काटे आदमीका उदाहरण यहाँ लागू नहीं होता। वहाँ तो आशाकी पूरी गुंजाइश होती है। यहाँ तो राष्ट्रीयता केवल नामकी है। तब हम अपने आपको क्यों धोखा दें? इस सारी चर्चामें असली प्रश्न तो केवल एक ही है— क्या अपने विचारोंमें हमारी आस्था इतनी गहरी है?

श्री मोहनलाल का० पण्ड्या

खादी कार्यालय
महुधा

बरास्ता नडियाद

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२३५) की फोटो-नकलसे।

२७५. तार : जमनालाल बजाजको

[ ३ अगस्त, १९२६ या उसके पश्चात् ][१]

निश्चय हो चुका है। ५,००० रुपया उत्कल भेजो। लेकिन सामान्य खादी कार्यके लिए पैसा इकट्ठा करो।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११२१६ ) से।

२७६. पत्र : क० नटराजनको

आश्रम
साबरमती
४ अगस्त, १९२६

प्रियश्री नटराजन,

आपका पत्र मिला। आपने मुझे जो करतन भेजी है, वह सारतः ठीक है। विट्ठलभाई मुझे पिछले तीन-चार महीनोंसे १,६०० रुपयेसे कुछ अधिककी रकम भेजते रहे हैं। मैं उनके साथ इस विषयपर विचार करता रहा हूँ कि यह समाचार

प्रकाशित करना उचित है या नहीं। लेकिन, उनका खयाल है कि चुनाव होनेतक

  1. यह जमनालाल बजाजके ३ अगस्तके तारके उत्तरमें दिया गया था। तारमें कहा गया था: "सतीशबाबू, निरंजन पटनाथकके साथ उड़ीसाके कार्य के बारेमें बातचीत की। पैसेके अभाव कार्यकी गति मन्द, यदि आप अनुमति दें तो पैसा इकट्ठा करनेका प्रयत्न करूंगा और सतीशबाबूको दूँगा।"