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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विश्वेश्वर बिरलाजीको मैंने यहाँ आनेमें उत्तेजन नहीं दिया है। एकान्त सेवन और आत्मनिरीक्षण करनेकी सलाह दी है।

बापू के आशीर्वाद

श्री हरिभाऊ उपाध्याय

खादी भंडार

अजमेर
मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ७७०४) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य : हरिभाऊ उपाध्याय

२६९. पत्र : एम० एल० गुप्ताको

१ अगस्त, १९२६

भाई श्री,

आपका प्रश्न मीला है। जैसे प्रश्नोंकी चर्चा 'न० जी०' में अनावश्यक समझता हूं। वनस्पति मात्रमें जीव तो है ही है। वनस्पति मनुष्यके उपयोगकी वस्तु है ईसलिये जबतक हम वनस्पति खायें तबतक उसका दतौन भी करें। जब हम अनावश्यक बड़ी हिंसा कर रहे हैं तो ऐसे सूक्ष्म प्रश्न उठा कर कयुं भ्रममें पड़े?

एम० एल० गुप्ता
अजमेर

मूल पत्र (एस० एन० १९९३९) की माइक्रोफिल्मसे।

२७०. सन्देश : जैन स्वयंसेवक सम्मेलनको[१]

२ अगस्त, १९२६

शत्रुंजय[२] सम्बन्धी निर्णयके बारेमें मेरे अपने कुछ विचार अवश्य हैं, परन्तु दोनों दलोंके हितको ध्यानमें रखकर मैं इस विषयपर जानबूझकर चुप रहा हूँ और में अपनी इस चुप्पीको तोड़ना नहीं चाहता।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ३-८-१९२६
  1. यह सन्देश अमृतलाल कालीदास सेठ की अध्यक्षतामें भारतीय जैन स्वयंसेवक सम्मेलन, बम्बई में पढ़ा गया था।
  2. शत्रंजय मन्दिरके सम्बन्धमें पालिताना दरबारको वार्षिक तीर्थ अथवा संरक्षा-कर देनेके प्रश्नपर जैनियों और दरबारके बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ था और सी० सी० वॉटसनने इसमें निर्णय जैनियोंके विपक्षमें दिया था।