२६७. पत्र : विट्ठलदास जेराजाणीको
आश्रम
साबरमती
रविवार, आषाढ़ कृष्ण ८, [१][१] अगस्त, १९२६
आपका पत्र मिला। तिरुपुरसे मिले दोनों पत्र वापस भेजता हूँ। इनकी नकल रखनेकी जरूरत नहीं। आप जब तिरुपुर जायें तब मुझे पत्र लिखें; मैं आपको वहाँके पतेपर पत्र लिखूंगा। जब जायें तब वहाँकी स्थितिका गहराईसे अध्ययन करें। यह भी गनीमत है कि इस वर्षकी बिक्री पिछले वर्षकी बिक्रीसे कम नहीं होगी।
व्यवस्थापक खादी भण्डार
प्रिंसेस स्ट्रीट
गुजराती प्रति (एस० एन० १२२३४) की माइक्रोफिल्मसे।
२६८. पत्र : हरिभाऊ उपाध्यायको
आश्रम
साबरमती
रविवार, आषाढ़ कृष्ण ८ [१ अगस्त, १९२६ ][२]
दो पत्र कल मिले, एक आज। मार्तण्डके लिये निश्चित रहो। मार्तण्डका और रमणीकलालका पत्र मैंने पढ़ लिया था। दोनों पत्र ठीक थे। मैसोरका रिपोर्ट[३] मुझको वापिस भेजनेकी कुछ आवश्यकता नहीं है। मेरे साथ एक नकल है। हिंदीकी सुधारणा करके जो भेज दी है वह बहुत उपयोगी होगी। इसी तरह समय मिलनेपर भेजते रहिये। देवदास आजकल तो मसूरीमें ही होगा। अपने दिल चाहे तबतक वहाँ रहे सकता है ऐसा मैंने कह दिया है। उसको शांतिकी और आरामकी आवश्यकता थी, और वह ले रहा है।
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