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२६३. भिखारी साधु

शायद ऐसा माना जाये कि 'भिखारी' शब्द 'साधु' शब्दका विरोधी है। लेकिन आजकल तो साधु वे ही कहलाते हैं जो गेरुआ वस्त्र पहनते हैं— चाहे उनका हृदय गेरुआ अथवा स्वच्छ हो या न हो। साधु शब्दका सच्चा अर्थ है, वह मनुष्य जिसका हृदय साधु या पवित्र हो। परन्तु ऐसे सच्चे साधु तो विरले ही मिलते हैं। भगवा वस्त्रवाले असाधु साधु भीख मांगते भी नजर आते हैं। इसलिए इस प्रकारके भीख माँगनेवालोंके लिए 'भिखारी साधु' शब्दका प्रयोग किया गया है। उन्हींके विषयमें एक भाई लिखते हैं[१] :

सुझाव तो सुन्दर है; परन्तु उसपर अमल न करेगा? गरीब लोगोंमें चरखेका प्रचार करने में जितनी कठिनाई है उससे अधिक कठिनाई भिखारी साधुओंमें चरखेका प्रचार करनेमें है, क्योंकि इसके लिए लोगोंके धर्म विषयक विचार बदलनेकी आवश्यकता है। आज धनवान लोग यह समझते हैं कि झोलीवालोंकी झोलीमें कुछ पैसे डाल दिये, बस परोपकार हो गया और यह पुण्य है। उनको कौन समझाये कि ऐसा करनेसे उपकारके बदले अपकार और धर्मके बदले अधर्म होता है तथा पाखण्ड बढ़ता है। छप्पन लाख नामधारी साधुओंमें सेवा भाव जाग्रत हो जाये और वे उद्यम करके ही रोटी खायें तो भारतमें स्वयंसेवकोंका एक जबरदस्त लश्कर बन जाये। गेरुआ वस्त्रधारी लोगोंको यह बात समझाना लगभग असम्भव है। उनमें तीन प्रकारके लोग हैं। उनमें एक बहुत बड़ा भाग उन पाखण्डी लोगोंका है जो केवल आलसी बने रहकर मालपुआ उड़ाने के इच्छुक हैं। दूसरा भाग जड़ है और यह मानता है कि भगवा वस्त्र और परिश्रम ये दोनों आपसमें मेल नहीं खाते। तीसरा भाग जो कि बहुत छोटा है- सच्चे त्यागियोंका है, परन्तु ये लोग भी दीर्घ-कालसे रूढ़ विचारके कारण यही समझते हैं कि संन्यासी परोपकारके लिए भी उद्योग नहीं कर सकता। यदि यह तीसरा, छोटा भाग उद्योगका मूल्य समझ जाये और यह अनुभव कर ले कि भूतकालमें चाहे जो भी हुआ हो इस युगमें तो संन्यासीको उदाहरण प्रस्तुत करनेके लिए उद्योग करना आवश्यक है, तो दूसरे दोनों भी सुधर जायेंगे। परन्तु इस वर्गको ऐसा समझाना बहुत कठिन है। कार्य धैर्यसे तथा उस वर्गको अनुभव प्राप्त होनेपर होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि जब भारतमें चरखेका करीब-करीब साम्राज्य हो जायेगा तब यह वर्ग उसको अपनायेगा। चरखेके साम्राज्यका अर्थ है हृदयका साम्राज्य और हृदयके साम्राज्यका अर्थ है धर्मकी वृद्धि। धर्मवृद्धि होनेपर यह छोटा संन्यासी वर्ग उसे बिना पहचाने रहेगा ही नहीं ।

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने सुझाव दिया था कि गांधीजी ऐसे भिखारी साधुओंको चरखा चलानेके लिए कहें।