पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/२८७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२६१. बालिकाका वध

'नवजीवन' के एक पाठक लिखते हैं :[१]

पत्र-लेखकने उस व्यक्तिका नाम और पता लिखा है। परन्तु में इस विवाहको रोकने में असमर्थ हूँ। यह पत्र मुझे पिछले सप्ताह ही मिला है। मैं वर या लड़कीको या उनके किसी सम्बन्धीको नहीं जानता। मैं उनके गाँवमें कभी नहीं गया। आप इसे मेरी भीरुता कहें या विवेकबुद्धि, परन्तु मेरी हिम्मत इस मामले में पड़नेकी नहीं हुई। प्राप्त पत्रकी सब बातें सही माननेपर मनमें यह इच्छा अवश्य ही उत्पन्न हुई थी कि मैं स्वयं उस गाँवमें जाऊँ और इस बूढ़ेसे जान-पहचान करके विवाह न करनेकी प्रार्थना करूँ या लड़कीके ही सगे-सम्बन्धियोंको समझाऊँ। परन्तु मैं इतना पुरुषार्थ नहीं कर सका। अतः मैंने सोचा कि नाम, गाँव छोड़कर और सब बातें लिख दूँ; मेरे लेखको पढ़कर यदि भविष्यमें कोई ऐसा भयंकर काम करनेसे रुक जाये तो उसीमें सन्तोष मानूँ।

इस विवाहके मूलमें विषयासक्तिके सिवा, दूसरा कारण क्या हो सकता है? धर्म तो यह कहता है कि मनुष्यके लिए एक ही विवाह पर्याप्त है। पत्नी अगर नादान भी हो और उसका पति न रहे तो ऊँची जातियोंमें तो उसे जन्म-भर वैधव्य ही सहना पड़ता है; परन्तु पुरुष कितनी ही उम्रका हो दुबारा एक छोटी-सी बालिकासे विवाह कर सकता है; यह कैसी असह्य और दुःखजनक स्थिति है। जाति-व्यवस्थाका समर्थन तभी किया जा सकता है जब कि उसमें ऐसे अत्याचारोंको रोकनेकी क्षमता हो।

यदि जातिके पंच या युवक हिम्मत करें तो ऐसी करुणाजनक स्थिति कभी पैदा न हो और कभी ऐसी घटना देखने में न आये। दुर्भाग्यसे पंच तो अपना धर्म भूल गये हैं। वे अपनी जातिकी नैतिक प्रतिष्ठाके रक्षक होनेके बजाय प्रायः उसके भक्षक ही देखे जाते हैं। उनकी दृष्टि सेवाभाव या परमार्थकी होनेके बजाय स्वार्थकी ही दिखाई देती है। जहाँ स्वार्थ नहीं होता और शुभेच्छा होती है वहाँ उसे अमलमें लानेकी उनकी हिम्मत नहीं होती। परन्तु भिन्न-भिन्न जातियोंकी और भारतकी सारी आशा युवकोंपर ही लगी हुई है। यदि युवक अपने धर्मको समझें और उसीके अनुसार चलें तो वे बहुत काम कर सकते हैं और ऐसे बेजोड़ विवाहोंका होना असम्भव बना सकते हैं। इसके लिए लोकमतको जाग्रत करनेके अलावा शायद और कुछ भी करनेकी जरूरत नहीं है। लोकमत जाग्रत हो जानेपर वृद्ध पुरुषोंकी हिम्मत उसके विरुद्ध

जानेकी नहीं होगी; और अपनी लड़कियोंको इस प्रकार गड्ढे में गिरानेकी हिम्मत माता-पिताओंकी भी नहीं होगी।

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने इसमें गांधीजीको सूचित किया था कि एक द्वादश वर्षीय कन्याका विवाह ५५ वर्षके एक बूढ़ेसे किया जानेवाला है, और प्रार्थना की थी कि वे इस विवाहको रुकवाने के लिए अपने प्रभावका उपयोग करें।