पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/२८०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चलनेवाले राष्ट्रीय विद्यालयके संचालनके बारेमें मुझे और कुछ लिखनेकी जरूरत नहीं है। यदि आप अपना कार्य व्यवस्थित ढंगसे करते रहें, तो इसका असर होकर रहेगा।

मैं आपके आहारके बारेमें कोई सुझाव नहीं दे सकता। इस सम्बन्धमें आपको सोच विचार कर जैसा लगे खुद ही तय करना होगा। इस तरह आप स्वयं ही अपनी ठीक-ठीक जरूरत समझ जायेंगे। आप खानेकी मात्रा कम कर सकते हैं, भोजनकी विविधतापर प्रतिबन्ध लगा सकते हैं, उसमें रद्दोबदल कर सकते हैं। यह सब तबतक किया जा सकता है जबतक यह आपके शरीरको माफिक आता रहे और उससे आपके स्वास्थ्यको नुकसान न पहुँचे। मैंने अपनेपर अथवा अन्य लोगोंपर दूध न लेनेके जो प्रयोग किये हैं उनमें मुझे उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली। इसलिए मैं आपको सलाह देता हूँ कि यदि आप दूध तथा उससे बननेवाली चीजोंके बिना आहार सम्बन्धी प्रयोग करें तो सावधानीसे काम लें। आपकी आँतोंकी हालत कैसी है और सामान्य रूपसे आपका शरीर कैसा है, इसे देख-समझकर आप जान जायेंगे कि आपके स्वास्थ्यपर दूध न लेनेका क्या प्रभाव पड़ा है···।[१] आप जो आहार ले रहे हैं, वह पर्याप्त है और उसमें आवश्यक पौष्टिक तत्व मौजूद हैं।

हृदयसे आपका,

श्री एस० एच० थत्ते

प्रधानाध्यापक
राष्ट्रीय विद्यालय
डोंडाइच

टी० वी० रेलवे

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६७८) की फोटो-नकलसे।

२५३. पत्र: जमनालाल बजाजको

आषाढ़ बदी ६ [ ३० जुलाई, १९२६ ][२]

चि० जमनालाल,

तुम्हारा देवदासके नामका पत्र पढ़ा। जो घटा घिरी है, उसकी मुझे आशा तो नहीं थी। पर घिरने दो। इससे तुम्हारे धर्मकी परीक्षा होगी। जब तुम्हारे पास आरोप-पत्र आ जायें तो तुम मुझे भेज देना। मैं जवाब तैयार कर दूंगा । उसमें जो परिवर्तन करना चाहो वह कर लेना। तात्पर्य यह है कि हमें पूर्ण विनयका पालन करना है। जातिको अधिकार है कि जो मनुष्य उसके नियमका उल्लंघन करे वह उसका बहिष्कार करे। तुमने जो-कुछ किया है, उसमें न तो शरमानेकी कोई बात है और

  1. साधन सूत्रमें यहाँ स्थान रिक्त है।
  2. जाति-बहिष्कारके उल्लेखसे लगता है कि यह पत्र १९२६ में लिखा गया होगा।