पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/२७४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहा जा सकता है। लोग साधारणत: बोलकर लिखवाये गये पत्रोंके द्वारा मित्रोंको फटकारते नहीं हैं। लेकिन मैं यह भी करता हूँ। तुम्हारे कुछ ज्यादा फटकारे जानेका खतरा नहीं है; इसलिए तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है।

मैं कु० नोरा कर्नसे[१] अवश्य मिला था। हमारी बड़ी देरतक खूब बातचीत हुई। मुझे बिलकुल पक्की याद तो नहीं है; परन्तु मेरा खयाल है उसने मुझसे तुम्हारी कोई बात नहीं की।

आशा है अबतक तुमने काफी ताकत पा ली होगी और तुम्हारा स्वास्थ्य पहले जैसा हो गया होगा।

तुम दोनोंको स्नेह।

तुम्हारा,

श्रीमती मॉड चीजमैन

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०७९३) की फोटो-नकलसे।

२४४. पत्र : एस० पी० मेननको

आश्रम
साबरमती
२९ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आप मुझसे विस्तारपूर्वक लिखनेके लिए नहीं कहेंगे। मेरे सामने जो काम है उसके बाद मुझे बहुत कम समय मिल पाता है। परम माननीय श्री नारायण गुरुस्वामीके कार्यकी प्रशंसा में जो कुछ कह सकता हूँ वह सिर्फ इतना ही कि वे अपने इस कार्यमें सफल हों। जो व्यक्ति अस्पृश्यताके इस अभिशप्त वृक्षके मूलपर कुठाराघात करता है वह हिन्दुत्वकी ही नहीं मानवताकी भी भारी सेवा करता है। मैं यह भी जानता हूँ कि इस कार्यको स्वयं थिया लोगोंसे ज्यादा अच्छी तरह और कोई नहीं कर सकता। क्योंकि आखिरकार प्रत्येक व्यक्तिकी मुक्ति स्वयं उसके ऊपर निर्भर करती है; और जो बात व्यक्तिपर लागू होती है वही बात समुदायोंपर भी लागू होती है।

हृदयसे आपका,

श्री एस० पी० मेनन

सम्पादक
'स्नेहितन'
डा० वडकनचेरि

(कोचीन राज्य)

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १११३१) की फोटो-नकलसे।

  1. मॉडकी सखी।