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२४२. पत्र : ई० सी० कार्टरको

आश्रम
साबरमती
२९ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

२३ जूनका लिखा आपका पत्र मिला। मैं जानता हूँ कि मेरे हेलसिंगफोर्स न जानेसे कितने ही मित्रोंको बड़ी निराशा हुई है। मैं भी कोई कम निराश नहीं हुआ। परन्तु जाने क्यों मेरे अन्तःकरणकी आवाजने यही कहा कि मुझे नहीं जाना चाहिए।

कुमारी नेली ली हॉल्टके[१] भारत आनेपर उनसे मिलकर मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। यदि वे इस वर्षमें आई तब तो कोई दिक्कतकी बात नहीं है; क्योंकि २० दिसम्बरतक साबरमतीसे बाहर जानेका मेरा इरादा नहीं है। और यदि उन्हें आश्रमका सरल जीवन कष्टकर प्रतीत न हुआ तो वे निस्सन्देह आश्रममें ही ठहरेंगी। यदि वे चाहें तो लोगोंको अपने सभी पत्रोंके लिए आश्रमका पता दे सकती हैं।

हृदयसे आपका,

श्री ई० सी० कार्टर

१२९, ईस्ट ५२ स्ट्रीट,

न्यूयॉर्क (यू० एस० ए०)

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०७९२) की फोटो-नकलसे।

२४३. पत्र : मॉड चीजमैनको

आश्रम
साबरमती
२९ जुलाई, १९२६

प्रिय मॉड,

मेरे सामने तुम्हारा दूसरा पत्र है।[२] सचमुच टाईपराइटर मुझे भी बिलकुल पसन्द नहीं है। मैं अपना सारा पत्र-व्यवहार अपने हाथसे ही करना चाहता हूँ। लेकिन मैंने इस मामले में अपेक्षाकृत एक कम खराब तरीकेका सहारा लिया है। जितनी शक्ति बचाकर रखी जा सकती है, उतनी शक्ति में बचानेका प्रयत्न कर रहा हूँ। उपायके रूपमें में पत्रोंको बोलकर लिखवाता हूँ, उन पत्रोंको भी, जिन्हें प्रेम पत्र

  1. स्टीफेन्स कॉलेज, कोलम्बियाकी।
  2. श्रीमती मॉडने अपने पत्र में गांधीजीसे अपनी लिखावटमें पत्रका उत्तर पानेकी आशा की थी। लेकिन लिखा था, 'बिलकुल पत्र न मिले इससे तो टाईप किया हुआ पत्र ही बेहतर है।' (एस० एन० १०७६९)