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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होता है। यदि कोई नवयुवक और नवयुवती एक-दूसरेके प्रति आकर्षित होकर यह सोचें कि हम स्वतन्त्र हैं और हमारे स्वतन्त्र सम्बन्धसे किसीको कुछ लेना-देना नहीं है, यह तो केवल हम दोनोंका निजी मामला ही है तो उनका यह सोचना स्वतन्त्रताके विषयमें उनका भ्रम ही है। उनके पारस्परिक सम्बन्धका समाजसे सम्बन्धित न होना या समाजका उसपर कुछ भी नियन्त्रण न हो सकना एक नादानीका विचार है। उन्हें नहीं मालूम कि हमारे गुप्त और व्यक्तिगत कर्मोंका दूर-दूरतक जबरदस्त असर पड़ता है। समाजकी जो एकता व्यक्तियों, राष्ट्रों और समस्त मानवताको परस्पर बाँधती है वह सब प्रकारके व्यवधानोंसे परे है। हमारे ऐसे कामोंसे समाजकी व्यवस्था नष्ट हुए बिना नहीं रह सकती। कोई चाहे या न चाहे किन्तु केवल आनन्दके लिए कुछ दिनों साथ रहता या गर्भ-निरोध करते हुए यौन सम्बन्ध स्थापित करने के अधिकारकी कल्पना करना समाजके भीतर असामाजिकताके बीज बोना ही है। हमारी सामाजिक स्थिति वैसे ही स्वार्थ या स्वच्छन्दता भरे अनेक कामोंसे बिगड़ी हुई है। फिर भी सभी समाजोंमें अभीतक मान्यता तो यही है कि सन्तानोत्पत्तिकी शक्तिके व्यवहारसे जो जिम्मेदारी आ पड़ती है, लोग उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। इस जिम्मेदारीको माननेकी बातपर ही आज समाजमें पूँजी और श्रम, मजदूरी और विरासत, कर और सैनिक-सेवा तथा प्रतिनिधित्व आदिके अधिकार आदिका ढाँचा खड़ा हुआ है। इस जिम्मेदारोको अस्वीकार करनेवाला व्यक्ति समाजके सारे संगठनको अनायास ही हिला देता है। जो व्यक्ति सामाजिक जीवनके नियमोंका उल्लंघन करता है, वह दूसरेका बोझ बढ़ाकर स्वयं हलका बना रहना चाहता है; और इसलिए उसे किसी चोर, डाकू या लुटेरेसे कम नहीं माना जा सकता। समाजमें अपनी इस शारीरिक शक्तिका सद्व्यवहार भी हमारी वैसी हो एक जिम्मेदारी है, जैसा अपनी अन्य शक्तियोंका सद्व्यवहार। इस विषयमें समाज स्वयं तो निरस्त्र है और इसलिए उसके उचित उपयोगका भार उसने विवश होकर व्यक्तिको समझदारीपर ही छोड़ रखा है। इस कारण यह जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।

लेखक मानसिक आधारपर यही बात कहते हुए और भी अधिक दृढ़ताके साथ कहता है कि:

यह तो बहुत पहलेसे विश्रुत है कि स्वाधीनता बाहरसे सुख भले ही मालूम हो, किन्तु वास्तवमें वह एक भार ही है। यही इसकी खूबी भी है। स्वतन्त्रता बन्धनकारी है और कर्तव्योंके प्रति हमें अनिवार्य रूपसे जागरूक रहने को कहती है। स्वतन्त्रता प्रत्येक व्यक्तिके कर्त्तव्यमें वृद्धि करती है। व्यक्ति स्वतन्त्र होना चाहता है और अपने अधिकार क्षेत्रके विस्तारके लिए आतुर हो उठता है। पहले तो उसे लगता है कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पाना एक आसान बात है।