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अनीतिकी राहपर—५

बुद्धिका हाल तो उससे भी बुरा हो जाता है। फलस्वरूप हम चारों ओरसे चारित्र्यकी अवनति, उद्दाम प्रवृत्ति और स्वार्थपरताको बाढ़का रोना सुनते हैं।

वासनाओंकी कथित पूर्तिकी आवश्यकता और परिणामतः विवाहसे पूर्व युवकोंके असंयमके विषयमें इतना कहा। इस तरहके असंयमके हिमायती कहते हैं कि इसपर रोक लगाना ‘अपने शरीरका इच्छानुकूल व्यवहार करनेपर' रोक लगाना है। बेशक लेखकने विस्तृत रूपसे दलीलें देकर दिखाया है कि मानसिक और सामाजिक उन्नतिके लिए इसपर रोक लगाना आवश्यक है।

वह कहता है कि :

समाज-शास्त्रियों को निगाहमें सामाजिक जीवन बहुविध सम्बन्धोंका एक जाल, कमौके परस्पर आघात-प्रतिघातका नाम ही है। हमारी सारी क्रियाएँ एक-दूसरीसे कुछ ऐसी गुथी हुई होती हैं कि हमारा एक भी कर्म अन्य किसी कर्मसे विच्छिन्न या विलग नहीं कहा जा सकता। हम कुछ भी करनेकी कोशिश न करें, वह समाजके एकत्वके कारण हमारे अन्य भाइयोंपर असर डालनेवाला बन जाता है और हमारे गुप्तसे-गुप्त कर्म, विचार अथवा मनोभावका गम्भीर और दूरगामी प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। कई बार यह प्रभाव इतना गम्भीर और दूरगामी होता है कि हम उसकी पूर्वकल्पना भी नहीं कर सकते। समाजसे व्यक्तिका इस तरह जुड़ा रहना उसका सहजात गुण है। यह समाजमें कालान्तरमें रूढ़ नहीं हुआ है, बल्कि यह तो मनुष्यका सहज स्वभाव है, इसकी प्रतीतिका अंग है। व्यक्ति मनुष्य होने के कारण सामाजिक प्राणी तो है ही। हमारे लिए सामाजिकता जितनी स्वाभाविक है उतना स्वाभाविक और कुछ भी नहीं है। हमारे शारीरिक और नैतिक, आर्थिक और राजनीतिक तथा बुद्धि और भावना सम्बन्धी सभी काम एक रूढ़ और अनिर्दिष्ट सार्वभौम पद्धतिके बन्धनसे बँधे हुए हैं। यह बन्धन इतना मजबूत है, इसका जाल इतना घना बुना हुआ है कि उसको समझने की कोशिशमें समाज-शास्त्रीको सर्वकाल और सर्वदेशसे आँखें चार करनी पड़ती हैं और वह हक्का-बक्का रह जाता है। क्षण-भरमें ही उसके सामने स्पष्ट हो जाता है कि कभी-कभी व्यक्तिका उत्तर-दायित्व कितना बड़ा हो सकता है और वह समझ जाता है कि यदि कोई समाज व्यक्तिको किसी विषयमें स्वतन्त्र छोड़नेका लोभ दिखाये और व्यक्ति उसे स्वीकार कर ले तो परिणामस्वरूप वह कितना छोटा बन जा सकता है। इसके बाद लेखकने यह दिखलाया है कि :
जब हमें सड़कपर चाहे जहाँ थूकने तकका अधिकार नहीं है, तब भला सन्तानोत्पत्ति जैसी महाशक्तिको जहाँ-तहाँ फेंकते रहनेका अधिकार कैसे मिल सकता है। ऊपर बतलाई हुई समस्त बातोंसे यह कोई अलग-थलग क्रिया नहीं है। उलटे इस क्रियाको गुरुताके कारण समाजपर इसका प्रभाव और भी गहरा