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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह चिट्ठा पहले निकाले गये तिलक स्मारक-कोषके उस चिट्ठेसे बिलकुल अलग है जिसमें कोषकी स्थापनाके दिनसे अबतकका हिसाब दिया गया है। इस चिट्ठेमें अबतकका अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके हिसाबके साथ-साथ प्रान्तीय कांग्रेस कमेटियोंका हिसाब भी आ गया है। इस आय-व्यय पत्रकमें ३० नवम्बर, १९२५ तककी स्थिति आ जाती है।

आशा है, प्रान्तीय कमेटियाँ लेखा-निरीक्षकोंकी हिदायतोंपर अमल करेंगी। यदि केन्द्रीय और प्रान्तीय कांग्रेस कमेटियाँ अपने आय और व्ययका हिसाब ठीक तरहसे रखें तो उससे कांग्रेस संगठनकी जड़ें जितनी मजबूत होंगी उतनी अन्य किसी बातसे न होंगी। इस चिट्ठेमें ६४ फुलस्केप कागजोंमें विभिन्न प्रान्तीय कांग्रेस कमेटियोंका हिसाब सही-सही और प्रमाणित रूपमें दिया गया है। जिन लोगोंको कांग्रेसके पैसेके हिसाबमें दिलचस्पी है, उनके लिए सबसे अच्छी बात यह है कि वे दो आनेके डाक टिकट भेजकर इसकी एक प्रति श्रीयुत रेवाशंकर जगजीवन झवेरी, अवैतनिक कोषाध्यक्ष अ० भा० कांग्रेस कमेटी, झवेरी बाजार, बम्बईसे मँगा लें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २९-७-१९२६

२३५. अनीतिकी राहपर—५

ब्रह्मचर्य से होनेवाले शारीरिक लाभोंपर विचार कर चुकनेके बाद महाशय ब्यूरो उसके नैतिक और मानसिक लाभोंपर प्रो० मॉन्टेगजाका अभिप्राय उद्धृत करते हैं:

ब्रह्मचर्यके त्वरित लाभोंका अनुभव सभी कर सकते हैं— विशेषतः नवयुवक। इससे स्मरण-शक्ति स्थिर और संग्राहक, बुद्धि प्रसन्न और उर्वरा तथा इच्छाशक्ति तेजस्वी हो जाती है। समूचा जीवन ऐसा शक्तिशाली बन जाता जिसका स्वेच्छाचारियोंको कभी अनुभव ही नहीं हो सकता। पवित्रतासे बढ़कर आसपासके दिव्य रंगोंको व्यक्त करनेवाला बिल्लौरी काँच दूसरा है ही नहीं। यह अपनी किरणोंसे जगत्‌की नगण्यतम वस्तुको भी दमका देता है। यह हमें शाश्वत सुख और शुचि आनन्दसे भरे एक ऐसे लोकमें पहुँचा देता है जिसे कोई कालिमा नहीं छूती और जो कभी फीका नहीं पड़ता। एक ओर ब्रह्मचारी नवयुवकोंकी प्रफुल्लता, शीलपूर्ण विनोद और जाज्वल्यमान आत्मविश्वास तथा दूसरी ओर इन्द्रियोंके दासोंकी अशान्ति, बेचैनी और घबराहट में आकाश-पातालका अन्तर होता है। इसके बाद लेखक संयमशीलताके लाभ और वासना तथा अविचारके दुखदायी फलोंका मिलान करता है और कहता है कि क्या कभी किसीने इन्द्रिय-संयमसे किसी रोगके उत्पन्न होनेकी बात सुनी है, जबकि इन्द्रियोंके असंयमसे होनेवाले रोगोंको कौन नहीं जानता? इससे शरीर इतना गया-बीता बन जाता है कि उसका वर्णन नहीं हो सकता.. मन और