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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। परन्तु कसाइयों और कलालोंको तो कोई अलग नहीं रखता। वेश्याओंको अलग रखना ठीक है, उनका पेशा घृणित है और समाजकी उन्नतिके लिए बाधास्वरूप है। परन्तु अछूतोंका पेशा तो न केवल इष्ट ही है, बल्कि वह तो समाजके हितके लिए परमावश्यक है।

यह कहना तो गुस्ताखीकी हद है कि अछूतोंको परलोकके हक तो प्राप्त हैं। यदि परलोकके अधिकार भी छीन लेना अपने ही हाथमें होता तो बहुत सम्भव है कि अछूतपनकी राक्षसी प्रथाके समर्थक उनको वहाँ भी अलग ही छाँट देते। यह कहना तो लोगोंकी आँखोंमें धूल झोंकना है कि गांधी अछूतोंको छू सकता है और अन्य लोग नहीं। मानो अछूतोंको छूना या उनकी सेवा करना इतने बड़े दोष हैं कि जिसके लिए वैसे ही आदमियोंकी जरूरत है जो अछूत रूपी रोगाणुओंसे अपनेको बचा लेनेकी विशेष शक्ति रखते हों। मुसलमानों, ईसाइयों तथा अन्य उन लोगोंको जो अस्पृश्यता नहीं मानते, कौन-सी नरक-यातना दी जायेगी, सो तो भगवान ही जानें।

शरीरमें विद्युतशक्ति होनेकी दलीलमें भी अतिशयोक्ति है। ऊँची जातिके सभी लोग न तो कस्तूरी-जैसे सुगन्धित हैं और न अछूत प्याज जैसे दुर्गन्धयुक्त। ऐसे हजारों अछूत हैं जो तथाकथित ऊँची जातिके लोगोंसे हजार गुना अच्छे हैं। यह देखकर कष्ट होता है कि अस्पृश्यताके विरुद्ध ५ वर्षोंके लगातार प्रचारके बाद आज भी कितने ही ऐसे पढ़े-लिखे विद्वान् पुरुष मिल जाते हैं जो इस अनीतिमूलक और दूषित रिवाजका समर्थन करते हैं। विद्वानोंमें अस्पृश्यता भावके रहनेसे अस्पृश्यताको प्रतिष्ठा नहीं मिलती; इससे तो केवल विद्या द्वारा चारित्र्य और समझदारीकी कुछ वृद्धि हो सकनेकी हमारी आशापर पानी भर पड़ता है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २९-७-१९२६

२३३. शास्त्राज्ञा बनाम बुद्धि

वह शिक्षक, जिन्होंने अपने शिष्योंको चरखा चलाना इसलिए सिखाया था कि 'महात्माजीका हुक्म' है, लिखते हैं :

२४ जून, १९२६ के 'यंग इंडिया' में 'महात्माजीका हुक्म' शीर्षक आपका लेख पढ़कर निम्नलिखित शंकाएँ मेरे मनमें उत्पन्न हुई :

आप विवेकको बहुत प्राधान्य देते हैं। क्या आपने 'यंग इंडिया' अथवा 'नवजीवन' में यह भी नहीं लिखा था कि विवेक इंग्लैंडके राजाकी तरह अपने इन्द्रियरूपी मन्त्रियोंके हाथोंकी कठपुतली है? क्या आदमी प्रायः उसी दिशामें तर्क नहीं करता, जिस दिशामें उसकी इन्द्रियाँ उसे ले जाती हैं? तब फिर आप बुद्धिको पथप्रदर्शक कैसे करार दे सकते हैं? क्या आपने यह नहीं कहा है कि तर्क, विश्वासानुसारी होता है? इसलिए यदि किसी व्यक्तिकी रुचि कातनेमें नहीं है, तो वह न कातनके पक्षमें दलीलें भी ढूंढ़ लेगा। छोटे बच्चोंकी