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२३२. अस्पृश्यता-रूपी रावण

किन्हीं विद्वान पण्डित महोदयने दक्षिणके देशी भाषाके पत्रोंमें अस्पृश्यताके समर्थनमें लिखा है। एक मित्रने उनकी दलीलोंका सारांश भेजा है।

(१) आदि शंकराचार्यने किसी चाण्डालको अपनेसे दूर रहने को कहा था और त्रिशंकुको चाण्डाल हो जानेका शाप मिलनके बाद सब उससे दूर-दूर ही रहते थे। ये बातें सिद्ध करती हैं कि अस्पृश्यताकी पैदाइश हालकी नहीं है।
(२)आर्यजातिसे बहिष्कृत लोग चाण्डाल हैं।
(३) स्वयं अछूत भी तो अस्पृश्यताका पालन करते हैं।
(४) अछूतोंको अछूत तो इसलिए माना जाता है कि वे पशुओंकी हत्या करते हैं और माँस, लहू, हाड, मलमूत्रादिका काम करते हैं।
(५) अछूतोंको उसी प्रकार अलग रखना चाहिए जिस प्रकार कसाई-खानों, शराब-ताड़ीकी दूकानों और वेश्यालयोंको दूर रखा जाता है या रखा जाना चाहिए।
(६) उन्हें परलोकके हकोंसे वंचित नहीं रखा गया है, उनके लिए तो यही काफी है।
(७) गांधी ऐसे व्यक्तियोंको छूते हैं या उपवास करते हैं तो ऐसा करें। हम लोगोंको न तो उपवास करना है और न उन्हें छूनेकी ही हमें जरूरत है।
(८) मनुष्यको उन्नतिके लिए अस्पृश्यताका पालन अत्यन्त ही आवश्यक है।
(९) मनुष्यके पास विद्युत-शक्ति जैसी कोई शक्ति रहती है। इसे दूधके जैसा माना जा सकता है। गन्दी चीजोंके सम्पर्कसे सम्भवतः यह शक्ति जाती रहेगी। इसलिए यदि प्याज और कस्तूरीको एक साथ मिला कर रखना सम्भव हो तो ब्राह्मण और अछूतको भी एक साथ रखा जा सकता है।

पत्रलेखकने इन्हीं मुख्य-मुख्य बातोंकी सूची बनाकर भेज दी है। अस्पृश्यता हजार सिरोंवाला रावण है । इसलिए जब कभी यह अपना सिर उठाये हमें उसे कुचल देना होगा। यदि हम अपनी आजकी स्थितिपर उन कथाओंका अभिप्राय न समझे तो पुराणोंकी कुछ कथाएँ तो बहुत ही खतरनाक कही जा सकती हैं। यदि हम अपना जीवन शास्त्रों में कही हुई हरेक छोटी-बड़ी बातके अनुसार बनायें या हम उसमें वर्णित पात्रोंका ठीक-ठीक अनुकरण करने लगें तो ये शास्त्र हमारे लिए प्राणघातक जाल ही बन जायेंगे। हमें उनसे तो केवल सिद्धान्तकी मुख्य-मुख्य बातें स्पष्ट करने या उन्हें ठीक-ठीक समझनेमें सहायता मिलती है। यदि किसी धार्मिक ग्रन्थमें किसी प्रसिद्ध पुरुषके कोई पाप करनेका उल्लेख हो तो क्या उससे हमें भी पाप करनेकी आज्ञा मिल जाती है? यदि हमसे उन्होंने केवल एक बार ही यह कह दिया