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२३०. पत्र : पानाचन्द शाहको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, आषाढ़ बदी ४, २८ जुलाई, १९२६

भाईश्री पानाचन्द,

आपका पत्र मिला। गोरक्षाके लिए भेजे गये पैसोंकी रसीद इसके साथ है। दानी भाइयोंके नाम 'नवजीवन' में आ गये हैं। वहाँके समाचार जानकर खुशी हुई। चरखा फिर चालू हो सके तो बहुत अच्छा होगा।

यदि राष्ट्रीय शालाओंकी पद्धतिके बारेमें कुछ प्रकाशित होगा तो मैं आपको भेज दूंगा। यदि पाठ्य-पुस्तकोंकी कोई सूची होगी तो उसे भी भेज दूंगा। आपको पूनियाँ बनाना वहीं सीख लेना चाहिए। भाई भगवानजी काम करना अच्छी तरह जानते हैं। उनकी मदद लेना उचित है। हथकते सूतकी खादी वहाँ न मिले तो यहाँसे मँगा लेनी चाहिए। गुजराती प्रति (एस० एन० १०९७२ ए) की माइक्रोफिल्मसे।

२३१. पत्र : ए० बी० गोदरेजको

आश्रम
२८ जुलाई, १९२६

भाईश्री ५ गोदरेज,

आपका पत्र मिला। सामान्य रूपसे न्यासके पैसे व्यक्तिगत रूपसे लोगोंको उधार नहीं दिये जाते। जमनालालजी व्यक्तिगत रूपसे किसी अन्य सज्जनको और वह भी अपने किसी मित्रको जिस तरह पैसा उधार दे सकते हैं, उस तरह वे एक न्यासीके रूपमें न्यासके कोषमेंसे नहीं दे सकते। और यह उचित है। संसारका अनुभव भी यही है। दानी जरूरत पड़ जानेपर दान किये हुए अपने पैसेका उपयोग नहीं कर पाता, इसका उसे दुःख नहीं करना चाहिए। उसे उसका उपयोग करनेकी इच्छा भी नहीं करनी चाहिए।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १२२१७) की फोटो-नकलसे।