२२४. पत्र : वी० ए० सुन्दरम् को
आश्रम
साबरमती
२८ जुलाई, १९२६
तुम्हारा साप्ताहिक उपहार मिला। सावित्री भी कभी-कभी लिखती रहे जिससे मुझे पता चलता रहे कि उसने हिन्दीमें कितनी प्रगति की है। निश्चय ही तुम तो [ आश्रमके ] पुराने निवासी हो। सर्दीमें तुम्हारे आनेकी उत्सुकतासे राह देखूंगा।
हृदयसे तुम्हारा,
बापू
अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ३१९५) की फोटो-नकलसे।
२२५. पत्र : डा० मुरारीलालको
आश्रम
साबरमती
२८ जुलाई, १९२६
बम्बईके राष्ट्रीय स्त्रीमण्डलकी कुमारी मीठूबहन पेटिटने मुझे लिखा है कि उन्होंने कांग्रेस सप्ताह के दौरान प्रदर्शनीमें बेचनेके लिये खादीके कसीदे आदिकी वस्तुएँ कुछ शर्तोंपर भेजी थीं। वह बार-बार पूरा हिसाब लिखकर भेजती रही हैं, अभी तक कोई उत्तर नहीं मिला । कृपया आप इस विषयमें पूछताछ करें। हमें अनिश्चित समय तक उनके पैसे नहीं रोक रखने चाहिये।
यह मंडल चन्द समाजसेवी परोपकारी महिलाओं द्वारा चलाया जा रहा है। वे स्वयं कोई मुनाफा नहीं उठातीं। इसकी एक-एक पाई उन गरीब स्त्रियोंको ही जाती है जो कसीदे आदिका काम करती हैं। यह एक परोपकारी संस्था है। इस तथ्यको न लेवें, तो भी जिसका जो-कुछ हमें चुकाना है वह न चुकाना गैर कामकाजी ढंगसे काम करना कहलायेगा - हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। मुझे पता चला है कि स्त्रीमण्डल और प्रदर्शनी-समितिके बीच एक लिखित करार हुआ था।
हृदयसे आपका,
कानपुर
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११२११) से।