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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सकते हैं? इस स्थितिको तो स्वयं विद्यार्थी ही बदल सकते हैं। बालकोंको 'गीता', 'रामायण' आदि पढ़ानेका मेरा निजी अनुभव आपके मतसे भिन्न है। इसलिए मैं लाचार हूँ।

अब मैं हर शनिवारको महाविद्यालयमें आया करूँगा इसलिए आप जो भी पूछना चाहें मुझसे वहीं पूछें।

श्री वीरसुत त्रिभुवन

गुजरात विद्यापीठ

उस्मानपुरा, अहमदाबाद

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२२३) की फोटो-नकलसे।

२२२. पत्र : छोटालाल मो० कामदारको

आश्रम
२७ जुलाई, १९२६

भाईश्री ५ छोटालाल,

आपका पत्र मिला। आज जिस तरहके दंगे होते हैं उस तरहके दंगोंसे किसी भी धर्मकी रक्षा नहीं होती। जहाँ परस्पर गहरा अविश्वास है, वहाँ आप जैसे लिखते हैं, वैसे काम नहीं हो सकता। साधुओंको किसी भी काममें लगाना कठिन है। जहाँ हर किस्मके भिक्षुकोंको भिक्षा देना धर्म माना जाता है, वहाँ जबतक स्थिति नहीं बदलती तबतक सुधार नहीं हो सकता। और यह स्थिति समयानुसार ही बदलेगी। मेरे कहनेका मतलब यह था, और है, कि जिस मालको हम नहीं बना सकते और जिसे बाहरसे मँगानेमें दोष नहीं है उसे बनानेकी आवश्यकता नहीं है। इसलिए कॉडलिवर ऑयल और शराब आदि अन्य वस्तुएँ बाहर बनें चाहे यहाँ, मेरी दृष्टिमें निषिद्ध हैं। मशीनोंमें जिस चरबीका उपयोग किया जाता है में उसका उपयोग निषिद्ध नहीं मानता।

मोहनदासके वन्देमातरम्

श्री छोटालाल मोहनलाल कामदार

पोस्ट बॉक्स नं० ३८९

रंगून

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९३७) की माइक्रोफिल्मसे।