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२१०. पत्र: जी० एन० कानिटकरको

सोमवार [ २६ जुलाई, १९२६ ]

भाई कानिटकर,

यह मेरा सन्देशा और लिखनेका समय मेरे पास नहीं है।

मोहनदास

ता० क०

स्वावलम्बनमें तुमने ठिकाना नहीं दिया है।

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ९५८) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य : जी० एन० कानिटकर

२११. सन्देश : महाराष्ट्रको जनताके नाम

साबरमती
सोमवार, आषाढ़ कृष्ण १, [ २६ जुलाई, १९२६]

मैं महाराष्ट्रके और महाराष्ट्रीयोंकी आशा कभी नहि छोड़ सकता हूँ। जिस महाराष्ट्रने निरंतर भारतभूमिको त्यागका और ज्ञानका पाठ सिखाया है वह महाराष्ट्र गरीबोंके चर्खाका और खादीका अनादर कभी नहि करेगा। मैंने तो कहा है "स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध हक है" मंत्र सिखाकर भारतवर्षको लोकमान्यने श्लोकार्ध दिया। स्वराज्य पानेका साधन चर्खा और खादी है कह कर मैंने उत्तरार्ध दिया है। इस साधनके स्वीकारमें महाराष्ट्र कब प्रथम स्थान लेगा?

मोहनदास गांधी

मूल (सी० डब्ल्यू ० ९६०) की नकलसे।
सौजन्य : जी० एन० कानिटकर