२०६. पत्र: रामदास गांधीको
आश्रम
साबरमती
आषाढ़ सुदी १५, १९८२ [२५ जुलाई, १९२६]
तुम्हारा पत्र मिला। मुझे तो ऐसा खयाल है कि तुम्हारा कोई भी पत्र उत्तर देनेके लिए बाकी नहीं है। सम्भव है, तुम्हारे अन्तिम पत्रका उत्तर देना रह गया हो पर मुझे याद नहीं आता। मेरा तो यही खयाल है कि मैं तुम्हारे अन्तिम पत्रका उत्तर भी तुम्हें भेज चुका हूँ। खेती सम्बन्धी तुम्हारे विचारोंको मैं बिलकुल समझ गया हूँ। मेरे कहनेका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक धनी मनुष्य मजदूरोंको सताता ही है। काठियावाड़में तुमने जैसा देखा है, अवश्य ही अनेक स्थानोंपर वैसा दिखाई देता है; परन्तु करोड़ों लोगोंकी खेती, जैसा मैंने लिखा है, उसी तरह चलती है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि खेतीमें मजदूरोंको चूसना जरूरी ही हो। कोई मनुष्य खेतीका अच्छा जानकार और पूरा-पूरा अनुभवी होता है। वह मजदूरोंको उचित मजदूरी देकर भी अपना निर्वाह करके जरूरतके लायक पैसा बचा सकता है। मेरी समझमें ऐसा करनेवालेके पास अच्छी-खासी पूंजी होनी चाहिए। मेरा तथा अन्य लोगोंका यह अनुभव है।
मैंने खादीके बारेमें 'नवजीवन' में जो जानकारी मांगी है उसे तुम मुझे जितनी जल्दी भेज सको उतनी जल्दी भेजो। और जब तुम्हारे प्रयोग पूरे हो जायें तब उन पर अपनी एक टिप्पणी भी लिख भेजो।
हरिलाल आया है और तीन दिनसे यहाँ है। अभी कितने दिन और रुकेगा सो निश्चित नहीं। राजकोटके घरके दस्तावेजोंपर तुम्हारे हस्ताक्षर हो गये हैं या नहीं? यदि न हुए हों तो मुझसे पूछकर करना। ऐसा लगता है बुआजीकी स्थिति अधिक दृढ़ करनेकी आवश्यकता है। यदि हस्ताक्षर कर दिये हों तो कोई हानि नहीं। पट्टणी साहब यहाँ चार-पाँच दिन रहनेके बाद कल चले गये।
खादी कार्यालय
गुजराती प्रति (एस० एन० १२२१४) की फोटो-नकलसे।