२०३. पत्र : मगनलाल सुन्दरजीको
आश्रम
२४ जुलाई, १९२६
आपका पत्र मिला। मेरा तो यह विचार है कि हम जिस मन्दिरमें जायें, जहाँ कृष्णकी वहाँ जानेपर उसके वातावरणके अनुरूप ही उपासना करें। इसलिए मूर्ति है वहाँ उसमें महादेवका आरोपण करना उचित नहीं लगता।
मोहनदास गांधी
मांडवी चौक
गुजराती पत्र (एस० एन० १९९३६) की माइक्रोफिल्मसे।
२०४. पत्र : विट्ठलभाई झ० पटेलको
आश्रम
साबरमती
२५ जुलाई, १९२६
आपके पत्र और सब मिलाकर ७,५७५ रु० के चेक मिले; जिसमें विधानसभाके प्रमुखके रूपमें आपके तीन महीनोंके वेतनका अंश और आपको भेंट की गई ५,००० रु० की थैलीकी बचत है। आप मुझे यह रकम किसी ऐसे देशोपकारी काममें खर्च करनेको कहते हैं, जिसे मैं पसन्द करूँ। उस पत्रके[१] बाद आप उदारतापूर्वक दिये गये अपने दानके उपयोगके विषयमें मुझसे चर्चा कर चुके हैं। उस रकमका सचमुच में क्या उपयोग करूँ, मैं इसपर खूब विचार करके अन्तमें इस निश्चयपर आया हूँ कि अभी हालमें तो मैं उसे जमा होते रहने दूं। इसलिए मैं उसे आश्रमके एजेन्सी खातेमें ६ महीनेकी बँधी मुद्दतके लिए जमा करता जा रहा हूँ, जिससे सूदकी अच्छी रकम
- ↑ १० मई, १९२६ के अपने पत्रके साथ विठ्ठलभाई पटेलने १६२५ रुपयेका चेक भेजा था (देखिए खण्ड ३० परिशिष्ट १) और फिर ३१ मई, १९२६ को ४३२५ रुपयेका। दूसरे चेकमें वेतनको बचतके अलावा बम्बई नगर निगम द्वारा भेंटमें दी गई थैलीकी बची हुई रकम भी थी। इस रकमके उपयोगके विषय में गांधीजीने मोतीलाल नेहरूको भी पत्र लिखा था। इस पत्रके लिए देखिए खण्ड ३०, पृष्ठ ४९१-९२ ।