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२००. पत्र : लक्ष्मीदास पु० आसरको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार, आषाढ़ सुदी १३ [२३ जुलाई, १९२६][१]

चि० लक्ष्मीदास,

मैंने एक पत्र भाई रामजीके बारेमें लिखा है, वह तुम्हें मिला होगा। आज उसके सम्बन्धमें खुशालभाईका जो उत्तर मिला है उसे तुम्हें भेजता हूँ। इसे पढ़नेके बाद मैंने भाई रामजीको लिखा है कि वे शान्त रहें और जरूरत जान पड़े तो दूसरा पाखाना बनवा लें। तुम्हारे पत्र नियमित रूपसे मिलते हैं। तुमने घनश्यामदासको जो दलील दी वह मुझे पसन्द आई है। मुझे उसमें कोई कमी नहीं दिखाई देती। रुईके बारेमें जो जानकारी चाहते हो उसे इकट्ठा करूँगा और तुम्हें भेजूंगा। तुम्हारा पहला लेख इस सप्ताह के 'नवजीवन' में प्रकाशित होगा। तुम देखोगे कि मैंने उसमें से दो छोटे-छोटे अनुच्छेद निकाल दिये हैं और एक छोटासा सुधार भी किया है।

जयाजीराव कॉटन मिल
ग्वालियर

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२१०) की फोटो-नकलसे।

२०१. पत्र : पूँजाभाई शाहको

आश्रम
साबरमती
२३ जुलाई, १९२६

भाई पूंजाभाई,

तुम्हारा सन्देश मिलनेपर मैंने रेवाशंकरभाईको पत्र लिखा था। उसका जवाब इसके साथ है। जब तुममें पूरी ताकत आ जाये और तुम किसीको साथ लेकर जा सको तो दो-एक दिनके लिए बम्बई चले जाना। उम्मीद है, अब तुम्हारी तबीयत अच्छी हो गई होगी।

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२११) की फोटो-नकलसे।

  1. पत्रमें उल्लिखित लक्ष्मीदास पु० आसरका यह लेख २५-७-१९२६ के नवजीवन में प्रकाशित हुआ था।