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१९३. राष्ट्रीयता और ईसाई धर्म

यूनियन क्रिश्चियन कालेज अलवाईके श्री मालकम मगरिजके एक भाषणका सारांश मेरे पास प्रकाशनार्थ भेजा गया है। वह संक्षेपमें नीचे दिया जाता है।[१] यह भाषण लाभदायक है, क्योंकि इससे यह प्रकट होता है कि ईसाई मतको माननेवाले हिन्दुस्तानियोंमें राष्ट्रीय जागृति हो रही है। आश्चर्य तो इस बातका है कि यह काम इतने दिनों रुका क्यों रहा? यह बात हमारी समझमें बिलकुल नहीं आती कि कोई भी धार्मिक पुरुष अपने निकटस्थ पड़ोसियोंके मनोरथसे सहानुभूति रखे बिना किस प्रकार रह सकता है। अन्तर्राष्ट्रीयतामें राष्ट्रीयताका भाव विद्यमान है लेकिन यह वह राष्ट्रीयता नहीं है जो संकीर्ण, स्वार्थमय या लोभपूर्ण होते हुए भी प्रायः 'राष्ट्रीयता' के नामसे पुकारी जाती है— बल्कि यह वह राष्ट्रीयता है जो अपनी उन्नति और स्वतन्त्रताके उद्देश्यपर दृढ़ रहते हुए भी दूसरे राष्ट्रोंको नुकसान पहुँचाकर उसे हासिल करना अपनी प्रतिष्ठाके विरुद्ध समझती है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २२-७-१९२६

१९४. वह गोलमेज परिषद्

आखिर, यह घोषणा हुई है कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी स्थितिके बारेमें होनेवाली परिषद केपटाउनमें होगी और यह भी सूचित किया गया है कि दक्षिण आफ्रिकासे एक आयोग हिन्दुस्तानका लोकमत समझने के लिए यहाँ आनेवाला है। भूतपूर्व मन्त्री श्री मलान आयोगके एक सदस्य होंगे।

इस सबका परिणाम अच्छा तो होना चाहिए।

यह एक ठीक बात है कि परिषद दक्षिण आफ्रिकामें होने जा रही है। वहाँकी संघ सरकार, चूंकि उत्तरदायित्वपूर्ण सरकार है, इसलिए उसके प्रत्येक कामके पीछे लोकमतका वैसा बल होना जरूरी होता है जैसा बल हासिल करनेकी भारतीय सरकार जरूरत नहीं समझती। और फिर, भारतवर्षमें भारतीयोंकी माँगोंके बारेमें लोकमत पैदा करनेकी जरूरत भी नहीं है, क्योंकि वह तो यहाँ उनके पक्षमें मौजूद ही है। दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी स्वत्वरक्षाके औचित्यपूर्ण होनेके सम्बन्धमें यूरोपीय लोकमतको सुधारनेके लिए जो-कुछ किया जाये, सो थोड़ा ही है। इसलिए यदि संघ सरकार नेकनीयतसे काम लेगी और यदि हिन्दुस्तानी प्रतिनिधियोंको विवेकके साथ चुना जायेगा तो परिषदमें जो प्रस्ताव पास होंगे उनको ध्यानमें न रखते हुए भी

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।