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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नियमोंका सावधानीसे पालन करना ही स्वास्थ्यकी रक्षाका उद्योग करना है, और इनका पालन न करना घोर आलस्य है। यह बात तुम मोतीको समझा दो।

मैं हिन्दू-मुस्लिम दंगोंको चिकित्सककी शल्यक्रिया-जैसा मानता हूँ। यदि इसके बिना काम चल सकता तो उत्तम बात होती, परन्तु स्पष्ट है कि हमारा यह सामाजिक अंग विषाक्त हो गया था और उसे पट्टी आदिसे ठीक करना सम्भव नहीं था। इन उपद्रवोंके बाद किसी दिन तो हममें एकता कायम होगी ही। और यदि समाजकी देह जर्जर ही हो गई है तो वह नष्ट हो जायेगी। किन्तु इनमें हानि भी क्या है? हम सब घोर निद्रामें थे; उससे आजकी स्थिति बुरी नहीं है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १२१३२) की फोटो-नकलसे।

१९१. पत्र : रेवाशंकर ज० झवेरीको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, आषाढ़ सुदी ११, २१ जुलाई, १९२६

आदरणीय रेवाशंकरभाई,

आपका पत्र मिला। रतिलालके[१] बारेमें दृढ़ रहना नितान्त आवश्यक है। मैंने तो उससे कह दिया है कि उसे हिसाबसे अधिक एक पाई भी नहीं मिलेगी। डाक्टरकी रकम तो हमें सीधी मँगा लेनी चाहिए। मैंने खर्च ज्यादा करनेके बारेमें चम्पाको भी कड़ा पत्र लिखा है, परन्तु वह उसका उत्तर टाल गई है। मैं उसके यहाँ आनेकी राह देख रहा हूँ।

पूंजाभाईको[२] परसों चक्कर आ गया था और वे गिर गये थे। इस समय उनकी हालत कहीं आने-जाने लायक नहीं है। लगता है आपने उन्हें छगनलाल मनसुखलाल-की पेढ़ीके कामके सम्बन्धमें आनेके लिए लिखा था। मुझे तो इस समय पूंजाभाईको इस मामलेमें तकलीफ न देना ही ठीक लगता है। पूँजाभाईकी इच्छा है कि जो कुछ करना हो उसे आप ही वहाँ कर लें। मुझे भी यही उचित लगता है।

यह तो स्पष्ट ही है कि आपका हर गर्मीमें किसी ठण्डी जगह जाना जरूरी है।

लेबर्नम रोड

गामदेवी

बम्बई

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२०८) की फोटो-नकलसे।

  1. रतिलाल प्राणजी मेहता, प्रेषीके भतीजे।
  2. अहमदाबादके पूंजाभाई हीराचन्द शाह।