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१८९. पत्र : बनारसीदास चतुर्वेदीको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, आषाढ़ सुदी ११, [२१ जुलाई, १९२६ ][१]

भाई बनारसीदासजी,

आपका पत्र मिला है। सब दलसे अलग रहनेकी नीति ही आजकल अच्छी लगती है। प्रवासी विभागके लिये कटु अनुभव मिला उससे मुझे दुःख होता है किन्तु आश्चर्य नहीं होता है। यह अखतरा करनेके लिये मुझको दुःख हो ही नहीं सकता है। अनुभव ज्ञान उसके सिवाय मिल ही नहीं सकता है। और मेरा वाक्य जो उद्धृत किया है उसका सत्य में प्रतिक्षण अनुभवता हूँ। और यह भी बिलकुल ठीक लिखा है कि प्रवासी विभागके निष्फलताके लिये महासभाके अधिकारीओको दोषित न माने जाये। डा० सुधीन्द्र बोसका दुःखप्रद किस्सा है।

मोहनदासके
बं० मा०

श्रीयुत बनारसीदास चतुर्वेदी

फीरोजाबाद

(यू० पी० )[२]

मूल पत्र (जी० एन० २५६७) की फोटो-नकलसे।

१९०. पत्र : नाजुकलाल नन्दलाल चोकसीको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, आषाढ़ सुदी ११, [२१ जुलाई, १९२६ ][३]

भाई नाजुकलाल

तुम्हारा पत्र मिला। मोतीका पत्र भी मिल गया है। ऐसा लगता है कि मोती यह मानती है कि दवा लेनेमें आलस्य न करने-मात्रसे ही स्वास्थ्यकी पूरी देखभाल हो जाती है, जबकि दवा लेना तो एक बहुत छोटी बात है। खाने-पीने, व्यायाम करने, सोने-बैठने इत्यादिमें नियमोंका उल्लंघन करनेसे ही व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। इन

  1. डाककी मुहरसे।
  2. मूल पत्रमें पता अंग्रेजीमें दिया गया है।
  3. डाककी मुहरसे ।