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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं कमजोरी अनुभव नहीं कर रहा हूँ। अनिश्चित कालतक केवल फलोंपर रहकर मैं अपनी शक्ति बनाये रख सकूंगा, ऐसा मैं नहीं सोचता। कब्ज ठीक करनेके लिये ही मैंने यह प्रयोग आरम्भ किया है। और अब तो मैं आनन्दके लिये इसे किये जा रहा हूँ। एक बार में दूध भी छोड़ना चाहता हूँ। इस समय मेरा आहार आम और अंगूर है।

सुन्दरम् से कहना कि उसका साप्ताहिक सुन्दर उपहार मुझे मिल गया है और यदि वह एक सप्ताह न भी भेजे तो चिन्तित न हो।

सबको स्नेह,

हृदयसे तुम्हारा,

श्री आर० बी० ग्रेग

द्वारा श्री एस० ई० स्टोक्स
कोटगढ़

शिमला हिल्स

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६७२) की फोटो-नकलसे।

१८८. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

आश्रम
साबरमती
२१ जुलाई, १९२६

साँचा:Eft खादी प्रतिष्ठानके बारेमें आपका जुन मासका पत्र मिला था। मेरा ख्याल यही रहा है कि मैंने आपको उसका उत्तर दे दिया था। आपने जो कुछ भी कीया है उस बारेमें मुझे कुछ भी कहना न था : जो कुछ भी सहाय खादी प्रतिष्ठानको आप दे सकें उस्में मेरी संमति ही हो सकती है। मेरा विश्वास है कि बंगालमें जो खादी-प्रवृत्ति चल रही है वह चलानेवाले सात्विक भावसे और शुद्ध बुद्धिसे और चतुराईसे चलाते हैं। बंगालमें चरखासंघके मारफत आजतक जो कुछ द्रव्य दिया गया है उसका हिसाब इसके साथ रखता हुं। अखबारोंसे पता मीलता है हिंदु-मुसलमानका झगड़ा वहाँ प्रतिदिन बढ़ रहा है तदपि अब मुझको बड़ा आघात नहि होता है और मेरा विश्वास कायम है कि इसीमेंसे भी एक दिन— और वो भी शीर्घतासे आयगा— इकट्ठे हो जायेंगे। सबसे ज्यादे दंगा बंगालमें होता है उसका भेद आपने पाया है?

मोहनदास

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६१३०) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला