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१८६. पत्र : सैयद हैदर रजाको

आश्रम
साबरमती
२१ जुलाई, १९२६

प्यारे दोस्त,

आपका खत[१] मिला। जेलसे रिहा होने के बाद मैंने जो कुछ कहा था वह एक दस्तखत शुदा दस्तावेजकी[२] शक्लमें मौजूद है। उसकी एक नकल मैं आपको भेज रहा हूँ। मुझे यह खुशफहमी जरूर थी कि जेलसे मेरी रिहाईसे एका पैदा होगा लेकिन मेरी उम्मीदपर पानी फिर गया। हालांकि मुझे आपकी इस वातसे इत्तिफाक है कि गलती हमारी है, फिर भी मुझे इसमें कोई शक नहीं कि विदेशी हुकूमत हमारी कमजोरियोंका फायदा उठाती है और अपना उल्लू सीधा करती है। आप मुझसे कहते हैं कि मैं कुछ करूँ। जो कुछ भी मेरे लिए मुमकिन है वह सब मैं कर रहा हूँ। लेकिन मैं अपनेको निहायत बेबस और नाकाबिल महसूस करता हूँ। जो इलाज मेरे पास है वह दोनोंमें से किसीको भी मंजूर नहीं है। इसलिए मैं तो ठीक वक्तके इन्तजारमें बस एक तरफ खड़ा देख रहा हूँ और दुआ माँग रहा हूँ। मुझे पूरा यकीन है कि किसी-न-किसी रोज लोगोंके दिमाग रोशन होंगे।

हृदयसे आपका,

सैयद हैदर रजा साहब

९, वाइकहम रोड

हेस्टिंग्स

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११०८२) की फोटो-नकलसे।

  1. श्री रज़ाने ३० जूनके अपने पत्र में भारतमें हिन्दू-मुस्लिम उपद्रवोंसे सम्बन्धित अंग्रेजी समाचार-पत्रोंके विवरणका जिक्र किया था। उन्होंने लिखा था: "मैंने गौर किया है कि ये उपद्रव आपकी गिरफ्तारीके साथ शुरू हुये थे। और मैंने उम्मीद की थी कि आपकी रिहाईके बाद ये खत्म हो जायेंगे। लेकिन ये तो अब भी बेरोकटोक चल रहे हैं।" श्री रज़ाने आगे लिखा था : "इस देशके अखबारोंका कहना है कि रिहा होनेपर आपने यह कहा, जो उनके मुताबिक आपने खुले-आम कहा था, कि दोनों कौमोंके जजबात इतने उभरे हुए हैं कि इसका एक हल यही है कि दोनों डटकर लड़ लें जिससे उनका गुस्सा खत्म हो जाये और दिमाग दुरुस्त हो जाये। मुझे यकीन है कि यह बात, जो आपको कही बताते हैं— पूरी सच नहीं है।" । (एस० एन० ११०७४)
  2. दस्तावेजसे अभिप्राय मुहम्मद अलोको लिखे पत्रसे है जिसे गांधीजी रिहा होनेपर "देशवासियों-के नाम सन्देश" के रूप में प्रसारित करना चाहते थे। देखिए खण्ड २३, पृष्ठ १७४-७५ ।