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१८१. पत्र : बासन्तीदेवी दासको

आश्रम
साबरमती
२० जुलाई, १९२६

प्रिय बहन,

आप मुझे कभी पत्र नहीं लिखतीं; और मुझे आपसे यह आशा भी नहीं करनी चाहिए कि इस स्थितिमें आप मुझे पत्र लिखेंगी। उर्मिला देवीने अभी मुझे एक विस्तृत पत्र भेजा है जिसमें उन्होंने आपके दुख और इस बार आप कैसी शोकाकुल हो उठी हैं, इसका वर्णन किया है। इसपर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। मोना तथा बेबी बीमार हैं और भोम्बलकी इतनी आकस्मिक और दारुण मृत्यु! साहसीसे-साहसी व्यक्ति भी ऐसे शोकसे टूट जाता है। लेकिन मुझे विश्वास है कि आप अपने नहीं तो कमसे-कम उनके लिए जिन्हें भोम्बल पीछे छोड़ गया है, शीघ्र ही अपनी विह्वलतापर काबू पा लेंगी।

कृपया साथका पत्र[१] सुजाताको दे दीजिएगा। आशा है मोना और उसका बच्चा दोनों ठीक होंगे और बेबी पूर्णतया स्वस्थ हो गई होगी। मैं समझता हूँ कि भास्कर भी अब स्वस्थचित्त हो गया होगा।

आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६६९) की फोटो-नकलसे।

१८२. पत्र : सुजाताको

आश्रम
साबरमती
२० जुलाई, १९२६

प्रिय सुजाता,

उर्मिलादेवीने मुझे लिखा है कि तुम अपना दुख धीरजके साथ सहन कर रही हो। मैं जानता हूँ कि तुम एक बहादुर लड़की हो। तुम कैसी हो इस बारेमें दो-एक पंक्तियाँ मुझे अवश्य भेजना। ईश्वर तुम्हारी मदद करे।

तुम्हारा,

श्रीमती सुजाता
कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६६९) की फोटो-नकलसे।

३१-१२
  1. देखिए अगला शीर्षक ।