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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पैमानेपर एक डेरी स्थापित की जा सकती हो तो जमीनका कुछ भाग इस कामके लिये अलग रखा जा सकता है। अगर यह ठीक नहीं बैठता तो अहमदाबादसे कुछ दूर जमीन खरीदनेके बारेमें मुझे उनसे सलाह-मशविरा करना होगा। मैं स्वयं यहाँ एक छोटी डेरी चला रहा हूँ; इसीको और बढ़ाना भी सम्भव हो सकता है। जो सज्जन डेरीके विषयमें सब कुछ जानते हैं उनसे स्वयं बातचीत किये बिना कुछ भी निश्चय नहीं किया जा सकता।

हृदयसे आपका,

सर हैरॉल्ड मैन

कृषि निदेशक

पूना, बी० पी०

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११२०५) को माइक्रोफिल्मसे।

१८०. पत्र : उर्मिलादेवीको

आश्रम
साबरमती
२० जुलाई, १९२६

प्रिय बहन,

आपका विस्तृत परन्तु हृदयविदारक पत्र मिला। यद्यपि आपने वह पत्र जल्दीमें और व्याकुल मनसे लिखा था, फिर भी वह स्पष्ट और सुसम्बद्ध है और उसमें कोई भी चूक नहीं है। मुझे यह जानकर दुःख हुआ है कि बासन्ती देवी भोम्बलकी मृत्युके आघातसे विचलित हो उठी हैं। देशबन्धुके निधनके बाद ही इतनी जल्दी, और मोना तथा बेबीकी बीमारीके साथ [ यह आघात लगनेपर ] उनका टूट जाना अजब नहीं है। परन्तु मैं आशा करता हूँ कि अब वे कुछ ठीक हुई होंगी और उन्होंने 'ईश्वरेच्छा' मानकर अपने मनको बहुत कुछ समझा लिया होगा।

मुझे यह जानकर तसल्ली हुई है कि सुजाता इस स्थितिमें अपेक्षित सहनशक्ति दिखा रही है और हिम्मतके साथ अपना दुख सह रही है। काश इस संकटके समय मैं वहाँ होता। लेकिन यह सम्भव नहीं है। प्रभु आप सबको शान्ति दे।

आपका,

श्रीमती उर्मिला देवी

४ ए, नफरकुण्डू रोड
कालीघाट

कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६६८) की फोटो-नकलसे।