१७४. पत्र : डाह्याभाई मनोरदास पटेलको
आश्रम
साबरमती
सोमवार [ १९ जुलाई, १९२६][१]
आपका पत्र तो मैंने कल शामको ही पढ़ा। मेरी कामना है कि आपका स्वास्थ्य जल्दी ठीक हो जाये। अकेले या दुकेले, जिस स्थितिमें भी रहना पड़े, उस स्थितिमें काम करनेकी शक्ति हममें होनी चाहिए। जब हम दृढ़तापूर्वक किसी काममें लग जाते हैं तभी उसका अच्छा परिणाम निकलता है। आप हारकर कभी न बैठें।
मोहनदासके वन्देमातरम्
वैद्य जयशंकर लीलाधरका दवाखाना
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २६९६) से।
सौजन्य : डाह्याभाई म० पटेल
१७५. पत्र : चमन कविको
आश्रम
सोमवार, १९ जुलाई, १९२६
तुम्हारा सूत सामान्यत: ठीक ही कहा जा सकता है। तुम्हें रुई पींजना सीख लेना चाहिए। तुम अब खादीपर कायम रहना।
मेरी दुर्बलताओंका क्या कोई अन्त है?
कह सकता हूँ कि मुझे कभी सम्मानका मोह था।
मेरे मनमें परस्त्रीको देखकर एक बार नहीं, अनेक बार कामवासना उभरी है।
कुविचारोंको दूर करनेका एक उपाय है। हम रो-रोकर प्रभुसे प्रार्थना करें कि हम सद्विचार ही करें और वह इसमें हमारा सहायक हो। क्या तुम प्रार्थना करते हुए
- ↑ डाककी मुहरसे।