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१७३. पत्र: जमनालाल बजाजको

सोमवार [१९][१] जुलाई, १९२६

चि० जमनालाल,

तुम्हारा तार मिल गया है। इसीलिए यह पत्र काशीसे लिख रहा हूँ। पिछले सप्ताह तुम्हें एक पत्र कलकत्तेके पतेपर लिखा था। गिरजाशंकर जोशीकी जमीन २१,००० रुपयेमें ले ली है। इसके अतिरिक्त फुटकर सामानका १,००० रुपयेसे कम देना होगा। कुल जमीन १९ बीघा है। उसमेंसे एक बीघा उनके लिए छोड़ देनी है। ५,००० रुपये बयानेके दे दिये हैं। शेष १६,००० रुपये एक महीनेके अन्दर देने जरूरी हैं। अब सवाल यह है कि जमीन किसके नाम लिखाई जाये? तुम्हारे नाम, आश्रमके नाम अथवा गोरक्षाके खाते? मुझे ऐसा लगता है कि जमीन आश्रमके नाम लिखा ली जाये। बादमें जिस कामके लिए इस्तेमाल करनी होगी उसके लिए करेंगे। पर मैं यह काम तुम्हारी इच्छाके अनुसार करना चाहता हूँ। जमीन चाहे किसीके नाम ली जाये, परन्तु रुपयोंका इन्तजाम तुम्हें करना होगा। बिड़ला-बन्धुओंसे बातचीत करनी हो तो करना। क्या करना है, यह सूचना तारसे दे देना। मैंने कहा है कि रुपया जितनी जल्दी दिया जा सकेगा उतनी जल्दी दे दिया जायेगा। इसलिए उसका भी बन्दोबस्त तुरन्त हो जाये, ऐसा प्रयत्न करना।

कलकत्तेके दंगोंकी बात सुनकर जानकीबहन[२] कुछ घबराती हैं। किन्तु उन्हें मैंने समझाकर शान्त कर दिया है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी० एन० २८६९) की फोटो-नकलसे।

  1. यह पत्र जमनालाल बजाजको भेजे गये १६-७-२६ के पत्रके बाद लिखा गया लगता है।
  2. जमनालाल बजाजकी पत्नी।