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१७१. सूतका बल और प्रकार

मैं पहले लिख चुका हूँ कि हम जिस तरह ३ अंकके सूतसे आज ८० अंकके सुतपर आ गये हैं, जैसे प्रति घंटा २०० गजकी गतिसे ८०० गजकी गतिपर आ गये हैं और सूतकी आँटी बनाने में भी सुधार कर सके हैं वैसे ही हमें सूतकी मजबूती और समानतामें भी सुधार करनेकी आवश्यकता है। जैसे-जैसे सूतकी मजबूती और समानतामें सुधार होगा वैसे-वैसे उससे कपड़ा बुनने में आसानी होगी और इसलिए बुनाई भी सस्ती होगी। हमें इतनी तरक्की तो करनी ही चाहिए कि जितनी प्रसन्नतासे आज बुनकर मिलका सूत लेते हैं वे उतनी ही प्रसन्नतासे हाथका सूत भी लेने लग जायें। हमारा ध्येय तो यह होना चाहिए कि हाथका सूत मिलके सूतकी अपेक्षा अधिक मजबूत और समान हो। इस दृष्टिसे आजकल हम गुजरातमें सूतकी किस्म सुधारनेके प्रयोग कर रहे हैं, और थोड़े ही दिनों में हमने सुतकी पर्याप्त समानता और मजबूती प्राप्त कर ली है।

गुजरात खादीप्रचारक मण्डलसे मदद लेकर खादी तैयार करनेवाली संस्थाओंमें-से आठ संस्थाओंके सूतकी अच्छाईके आँकड़े मुझे प्राप्त हुए हैं। जिनका सूत मण्डलके पास आया था, वे सब यज्ञार्थ[१] कातनेवाले हैं। कठलाल, नडियाद, धर्मज, भादरण, नापाड, वराड, सरभोण और अहमदाबादसे ७१ लोगोंके सूतकी किस्मका पत्रक मेरे समक्ष है। ऐसा देखने में आता है कि सबके पास बड़ी धुनकीसे घुनी हुई रुईकी पूनियाँ थीं। रुई वांकड, गोजी, नडियादकी देशी, बारडोली और सूरती किस्म की थी। इन सबमें मजबूतीका अंक ज्यादासे-ज्यादा 52¾ देखनेमें आया। किसी-किसीका सूत तो १५ तक नीचे गया है। सबसे ज्यादा औसतन मजबूती अहमदाबादके सुतमें दिखाई देती है और वह ४२ है। ७१ लोगोंमें 52¾ से आगे कोई नहीं गया है। और ज्यादातर तो ४० से नीचे ही हैं। यह मजबूती बहुत कम मानी जायेगी। ५० से नीचेकी मजबूतीका सूत बुननेमें बहुत मुश्किल होती है। सबके सूतकी मजबूती ६०से ऊपर तो होनी ही चाहिए। ७० मजबूती सामान्य कही जा सकती है। समानताका औसत 42½ आता है। यह ज्यादासे ज्यादा ५० तक अर्थात् सम्पूर्णता तक गई है। समानताका यह मान उचित माना जा सकता है। कमसे-कम समानता १३ अंककी देखने में आती है और यह बहुत ही कम है। समानता ४० से कम तो होनी ही नहीं चाहिए, क्योंकि ऐसा असमान अर्थात् मोटा-पतला सूत बुनना अत्यन्त कठिन है। ऐसे सूतसे केवल रस्सियाँ ही बन सकती हैं।

आजतक गुजरातमें चल रहे प्रयोगोंका परिणाम यह हुआ है कि मजबूती १०४ तक जा सकी है। १०४ मजबूतीका तात्पर्य है मिलके सूतकी अधिकतम मजबूतीसे ज्यादा। इन प्रयोगोंका विवरण कुछ दिनों बाद ही प्रकाशित किया जायेगा। लेकिन

  1. देखिए "भूल सुधार", १-८-१९२६ ।