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१६५. पत्र : आदम सालेहअलीभाईको

आश्रम
साबरमती
१६ जुलाई, १९२६

भाईश्री आदम सालेहअलीभाई

आपका पत्र मिला। मैं सभी धर्म-पुस्तकोंको सन्तोंकी वाणी मानता हूँ। वैसा ही 'कुरान शरीफ' को भी समझता हूँ। मैं हर धर्म-पुस्तकका भाव समझनेका प्रयत्न करता हूँ, उसके प्रत्येक शब्दपर आग्रह नहीं करता। मैं हजरत मुहम्मदको अनेक धर्म-शिक्षकोंमें से एक धर्म-शिक्षक मानता हूँ। मैं तो इस समय साकार गुरुके दर्शन करना चाहता हूँ। मेरे पास ऐसी कोई कसौटी नहीं है जिससे मैं जान सकूँ कि मेरे विचार ठीक ही हैं। मैं तो फूंक-फूंककर कदम रखनेवाला एक तुच्छ प्राणि-मात्र हूँ। परन्तु यदि मुझे मरणपर्यन्त गुरु न मिले तो मेरा जीवन व्यर्थ चला जायेगा, मैं ऐसा नहीं मानता। मेरा काम तो केवल प्रयत्न करना है। फल देनेवाला तो परमात्मा ही है। मैं अपनी शंकाओंके निवारणके लिए गुरुकी खोज नहीं करता। मुझे तो सन्तजनोंकी सेवा करना अच्छा लगता है; इसलिए वह मुझे प्रिय है। सारा हिन्दुस्तान चरखेके विरुद्ध नहीं है; लेकिन यदि विरुद्ध हो तो भी जबतक मेरी अन्तरात्मासे यह आवाज आती रहेगी कि चरखा चलाना ठीक है तबतक में चरखेपर अवश्य कायम रहूँगा।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९३९) की माइक्रोफिल्मसे ।

१६६. पत्र : बी० जी० हॉनिमैनको

आश्रम
साबरमती
१७ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र और तार[१], दोनों मिल गये हैं। जब तार मिला तो इतना समय नहीं था कि आपको समयसे तार द्वारा जवाब दे सकता, इसीलिए मैं डाकसे उत्तर

३१-११
  1. गांधीजीके १५ जुलाई, १९२६ के पत्र और तार प्राप्तिको सूचना देते हुए श्री हॉर्निमैनने यह आशा व्यक्तकी थी कि गांधीजी इस बातसे सहमत होंगे कि उमर सोबानीका निधन अप्रत्याशित था। और उन्होंने आगे लिखा था : मेरा, मेरे सह-सचिव और जमनादास, शंकरलाल, तैरसी, नरीमन, सबका साग्रह अनुरोध है कि आप आनेका भरसक प्रयत्न करें। (एस० एन० १०९६३) ।