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१६३. पत्र: जमनालाल बजाजको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार, आषाढ़ सुदी ६, १६ जुलाई, १९२६

चि० जमनालाल,

गिरजाशंकर जोशीकी जमीन, जिसे खरीदनेका हमारा विचार था, आज ले ली गई होगी। यह जमीन कुल मिलाकर १९ बीघा है। वे उसमें से बिलकुल छोरकी एक बीघा जमीन अपने पास रखना चाहते हैं। १८ बीघा जमीन और इमारतें २१,००० रुपये में खरीदनी हैं। यदि यहाँ वे स्वयं अथवा उनका कोई किरायेदार रहे तो हमारे कुएँसे पानीका उपयोग वे कर सकेंगे। जब वे शेष एक बीघा जमीन भी बेच देंगे तो पानीके उपयोगका यह अधिकार समाप्त हो जायेगा। बेचनेसे पहले पंच जितनी कीमत निश्चित करें, हम उसे उतने में ले सकेंगे। बयानेके रूपमें ५,००० रुपये अभी देने हैं और बाकी १६,००० एक महीनेमें। जमीन किसके नाम लेनी है, बयनामे में यह अभी नहीं लिखा गया है। मुझे तीन बातें सूझती हैं— (१) आश्रमके नाममें, (२) गोरक्षा खातेमें, (३) तुम्हारे नाममें। तुम लेना चाहो तो तुम ले लो। मेरा विचार यह है कि यह जमीन आश्रमके नाम ले ली जाये और डेरीके अथवा ठीक लगे तो चमड़ेके कामके लिए इसका उपयोग किया जाये। यह भी हो सकता है कि आश्रमकी किसी दूसरी जमीनमें गोशाला या चर्मालय आदि खोले जायें, और यह जमीन रहने और खेती करनेके काममें लाई जाये। यहाँ अभी तो मकानकी बहुत तंगी है। जमीन चाहे जिसके नाम ली जाये परन्तु रुपयोंका बन्दोबस्त तो तुम्हें वहीं करना होगा।

इस बारेमें जुगलकिशोरजी[१] और घनश्यामदासजीसे मिलना ठीक लगे तो मिल लेना। ऐसा लगता है कि चौमासा बीत जानेपर कुछ और मकान तो बनवाने ही पड़ेंगे। रुपयेके लिए क्या करना होगा और किसके नाम दस्तावेज लिखाया जायेगा, इस विषयमें तार देना। यहाँ बरसात बहुत अच्छी हुई है। लगभग रोज ही बाढ़ आ जाती है।

वहाँ[२] हिन्दू-मुस्लिम कलह दिनपर-दिन बढ़ता ही जाता है। इसके निवारणका उपाय निकाल सको तो निकालो। मुझे सब स्थिति सविस्तार लिखो।

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२०२) की फोटो-नकल तथा जी० एन० २८६८ से भी ।

  1. जुगलकिशोर बिदला।
  2. जमनालालजी उन दिनों कलकत्तामें थे।