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पत्र : हरिभाऊ उपाध्यायको

सामुदायिक काम शुरू हो जाता है। उसमें टट्टी साफ करना, कातना, बुनना, रास्तोंकी सफाई करना, भोजन पकाना और अन्य कई कार्य आते हैं। साढ़े दस बजे खानेकी घंटी बजती है और बारह बजेतक सब लोग भोजनसे निवृत्त हो जाते हैं। उसके बाद फिर काम शुरू होता है जो साढ़े चार बजेतक चलता है। साढ़े चार बजेसे सात बजेतक फिर भोजन पकाना और खाना-पीना होता है। सात बजेसे आठ बजेतक सायंकालीन प्रार्थना होती है। उसके बादके एक घंटेमें जो पढ़ना चाहे पढ़े अथवा चिन्तन करना चाहे चिन्तन करे। नौ बजे सबको सो जाना होता है। आश्रममें रहनेवालोंको सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अन्य यम-नियमोंका मनसा-वाचा-कर्मणा पालन करनेका प्रयत्न करना चाहिए। उन्हें खादी पहननेका व्रत भी पालना चाहिए। सभीको यज्ञके रूपमें कमसे-कम आधा घंटा सूत कातना चाहिए और अस्पृश्यताको अधर्म मानकर उसका त्याग करना चाहिए, आदि, आदि।

गुजराती प्रति (एस० एन० १२१९८) की माइक्रोफिल्मसे।

१५९. पत्र : हरिभाऊ उपाध्यायको

आश्रम
साबरमती
१५ जुलाई, १९२६

भाई हरिभाऊ,

आपको अध्यापक प्यारेलालजीका खत भेजता हूं। उस बारेमें तलाश करके कितने अंशमें सत्य है लिखें।

उज्जैनसे आपका खत मिल गया था। मैंने मैसोर दिवानका संमतिके लिये खत भेजा था। संमति मिल गई है। क्या मैं वह रिपोर्ट आपको भेज दूं या पुस्तकेजीको?

चि० मार्तण्डने कल खत लिखा होगा। उसके लिये निश्चित रहना।

मूल प्रति (एस० एन० १२२०१) की माइक्रोफिल्मसे।