पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/१८९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५३
पत्र : ऑ० टे० गिडवानीको

किसी भी कारणसे अहमदाबादसे बाहर कदम न रखनेके लिए प्रतिज्ञाबद्ध हूँ। आशा है आप मेरी स्थितिको समझकर, मुझे क्षमा देंगे[१]

हृदयसे आपका,

श्री बी० जी० हॉनिमैन

'इंडियन नेशनल हैरॉल्ड'
नवसारी बिल्डिंग
हॉर्नबी रोड

बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०९६२) की फोटो-नकलसे ।

१५६. पत्र: आ० टे० गिडवानीको

आश्रम
साबरमती
१५ जुलाई, १९२६

प्रिय गिडवानी,

आपका पत्र और तकुआ भी मिला। मैंने तकुओंके बारेमें उप-प्रधानाचार्यको भी लिखा है। तकुए जितने अच्छे बनने चाहिए, ये उतने अच्छी किस्मके नहीं हैं। यदि अच्छे तकुए वहाँ बनने लगें तो बड़ी सुविधा हो जायेगी।

मुझे खुशी है कि आप वहाँ कताई शुरू करा रहे हैं। आपके यहाँके सभी शिक्षकोंको तकलीपर कातना सीख लेना चाहिए। लड़कोंको उनसे ज्यादा अच्छी तरह कोई और व्यक्ति कातना नहीं सिखा सकता। यदि आपको एक शिक्षककी सचमुच जरूरत है तो आप बाबू ब्रजकृष्ण,[२] कृष्ण-निवास, कटरा खुशालराय, दिल्लीको लिखिए और मुझे भरोसा है कि वह आयेंगे और आपकी मदद करेंगे। वह बड़े उत्साही व्यक्ति हैं। शायद आप उन्हें जानते हैं। वह बड़े ही भले आदमी हैं और कुछ दिनोंके लिए सहर्ष आ जायेंगे। आप निश्चय ही बालकोंसे आग्रह कीजिए कि वे स्वयं रुई धुनें और अपनी पूनियाँ बनायें। कताईके साथ-साथ रुईकी धुनाईका काम चलना ही चाहिए।

आपने भोजनके बारेमें मुझसे एक सवाल पूछा है। मैं समझता हूँ कि आहारके शरीरपर जो प्रभाव पड़ते हैं, वे तो परिणाम ही हैं, उनको मांसाहारसे दूर रहने के कारणोंके रूपमें तो नहीं रखा जा सकता। क्योंकि यदि यह साबित भी किया जा

  1. हॉर्निमैनने गांधीजीको फिर आग्रह करते हुए लिखा था कि मामलेपर पुनः विचार करें; देखिए "पत्र : बी० जी० हॉर्निमैनको", १७-७-१९२६ ।
  2. ब्रजकृष्ण चाँदीवाला।