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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और उन्हें बहुत सोच-समझकर काम करना चाहिए था। जो चला गया है उसके बारेमें कुछ कहना नहीं चाहिए इस बातको मैं जानता हूँ। और फिर काम बिगड़ जाने के बाद सब लोग अक्लमन्दीकी बातें बताया करते हैं; परन्तु मैं यह सब उनके दोष ढूंढ़नेके अभिप्रायसे नहीं कह रहा हूँ। मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि हम सब इस देशभक्तके जीवनसे शिक्षा लें। आनेवाली पीढ़ियोंको किसी कामके बिगड़ जानेसे शिक्षा लेनी ही चाहिए। दूसरोंकी गलतियोंसे भी हमें कुछ सीखना ही चाहिए। हम सबको उमर सोबानीकी तरह अपने हृदय में देशप्रेम रखना चाहिए। हमें दान देनेमें उमर सोबानी बनना चाहिए। हम सबको उनकी तरह धार्मिक द्वेषसे दूर रहना चाहिए। परन्तु हमें उनकी तरह बेपरवाह और असावधान होनेसे बचना चाहिए। यही इस देशभक्तने हम सबके लिए वसीयत छोड़ी है और हमें उस वसीयतसे लाभ उठाना चाहिए।

मेरी उनके वृद्ध पिता और उनके परिवारके साथ अत्यन्त सहानुभूति है और मैं उनके साथ उनके शोकमें सम्मिलित हूँ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १५-७-१९२६

१५१. अहिंसा— सबसे बड़ी ताकत[१]

[ १५ जुलाई, १९२६ ][२] सबसे बड़ी ताकत जो मानवको प्रदान की गई है, अहिंसा है। सत्य उसका एकमात्र लक्ष्य है। क्योंकि ईश्वर सत्यसे इतर कुछ और नहीं है। लेकिन सत्यकी प्राप्ति अहिंसाके अतिरिक्त किसी अन्य उपायसे नहीं हो सकती; कभी नहीं होगी। जो गुण मानव और अन्य सभी पशुओंके बीचका अन्तर स्पष्ट करता है, वह मानवमें अहिंसक रह सकनेकी क्षमता; और मानव जिस हदतक अहिंसाका पालन करता है, उसी हदतक अपने लक्ष्यके निकटतक पहुँचता है। उससे आगे नहीं। निस्सन्देह, उसको कई और गुण भी प्रदान किये गये हैं। परन्तु यदि वे मुख्य गुण अर्थात् अहिंसाकी भावनाके विकासमें मदद नहीं देते तो वे उसे पशुसे भी निचले उस स्तरतक घसीट कर ले जानेका काम ही करते हैं, जिस स्तरसे वह अभी-अभी उठकर ऊपर आया ही है।

जबतक अहिंसाकी भावना करोड़ों स्त्री-पुरुषोंमें प्रधान नहीं बन जाती तबतक शान्ति शान्तिकी गुहार एक अरण्यरोदन ही रहेगी।

राष्ट्रोंके सशस्त्र संघर्षसे हम भयाक्रान्त हो जाते हैं। लेकिन आर्थिक संघर्ष उस सशस्त्र संघर्षसे किसी तरह कम नहीं है। सशस्त्र संघर्ष मानो एक शल्य-चिकित्सा है और

  1. यह लेख वर्ल्ड टुमॉरो के अक्तूबर अंकसे हिन्दूमें उद्धृत किया गया था।
  2. यह लेख १५-७-१९२६ को किर्बी पेजको लिखे गये पत्रके साथ भेजा गया था। देखिए अगला शीर्षक ।