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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इत्यादि डालते हैं। चाहे वह उनकी रोकथाम करे चाहे वह स्वयं उनके प्रवाहमें बहने लग जाये, उसके कृत्योंकी प्रतिध्वनि सामाजिक जीवनके कोने-कोनमें सुनाई पड़ेगी, क्योंकि यह प्राकृतिक नियम है कि गुप्तसे-गुप्त कार्य भी अपना असर डाले बिना नहीं रह सकता।

इसी रहस्यके बलपर हमारा किसी प्रकारकी अनीति करते समय यह मानना कि हमारे कुकृत्यका कोई दुष्परिणाम न होगा, एक प्रवंचना ही है। कोई असामाजिक कृत्य करते हुए हम अपनी हदतक तो स्वयं उसमें कोई दोष नहीं मानते क्योंकि हमारे कृत्योंका हेतु हमारा स्वार्थ या कोई सुख-लिप्सा ही होती है और समाजके विषयमें मन ही मन यह सोचते हैं कि उसे हम जैसे नगण्योंपर ध्यान देने की जरूरत ही क्या है, वह हमारे कुकृत्योंकी ओर देखेगा भी नहीं; और तिसपर हम इस बातकी आशा भी बनाये रखते हैं कि अन्य लोग तो विवेकशील रहकर साफपाक और सदाचारी ही बने रहेंगे। सबसे बुरी बात तो यह है कि हमारी यह खामखयाली, जबतक हमारा आचरण हमारे लिए सामान्य नहीं हो जाता, अपवाद-स्वरूप ही होता है तबतक, प्रायः सच ठहरती है और फिर इस प्रकार सफलता मिल जानेपर उसके मदमें आकर हम अपना वह दुराचरण रूढ़ कर लेते हैं और कोई उँगली उठाता है तो हम उसे न्यायसंगत ठहराते हैं। परन्तु ध्यान रहे कि पतनको पतन न गिनने योग्य मनकी स्थिति बन जाना ही हमारी सबसे बड़ी सजा है।

फिर कोई दिन ऐसा आता है कि जब इस सम्बन्ध में हमारा आचरण दूसरोंके लिए कर्त्तव्यच्युत होनेका उदाहरण बन जाता है। हमारा हरएक कुकृत्य दूसरोंके मनमें सदाचारके प्रति उस प्रेमको अधिक कठिन और धैर्यका काम बना देता है जिसे हम 'दूसरों' में विद्यमान देखते रहना चाहते हैं। फल यह होता है कि हमारा पड़ोसी भी धोखा खाते-खाते ऊब कर हमें आदर्श मानकर चलनेके लिए तत्पर हो उठता है। बस, अधःपतन प्रारम्भ हो जाता है और हर आदमीको अपने कुकृत्योंके परिणामोंका अनुमान होने लगता है और वह यह भी जान सकता है कि उत्पन्न परिस्थितिमें उसका उत्तरदायित्व कहाँतक हैं···।

वह गुह्य कार्य अपनी उस गुफासे जिसमें हम उसे बन्द समझते थे, निकल पड़ता है। एक प्रकारकी अ-भौतिक गतिसे, अणुके टूटने जैसे-ढंगसे वह सभी क्षेत्रों में व्याप्त हो जाता है और हर आदमीको एक-दूसरेके कियेका फल भोगना पड़ता है तथा सड़ी मछली सारे तालाबको गन्दा कर देती है। प्रत्येक कृत्यका सामाजिक जीवनके सुदूर कोनों- कोनोंमें भी वैसा ही असर होता है जैसे किसी जलाशयमें पत्थर फेंकनसे पानीकी सारी सतहपर मण्डल बनते और फैलते चले जाते हैं।