स्कूलों में ९०,००० विद्यार्थी शिक्षा पाते हैं। इस प्रकार उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रोंमें शिक्षा पानेवाले ४,००,००० विद्यार्थियोंके मुकाबले हमारे सभी व्यावसायिक स्कूलों में शिक्षा पानेवाले ३५,००० विद्यार्थी क्या चीज हैं। हमारे देशमें १७,७०,००० लोगोंकी आजीविकाका साधन कृषि है और उसमें भी ७,७९, ७९८ लोग अट्ठारहसे कम आयुके हैं। तब फिर हमारे कृषि सम्बन्धी विशेष स्कूलोंमें पढ़नेवाले विद्यार्थियों की संख्या ३,२२५ ही क्योंकर है?
ब्यूरोने इस बातको जरूर कुबूल किया है कि जर्मनीकी इस तमाम आश्चर्यजनक उन्नतिका कारण केवल जन्मसंख्याका मृत्यु-संख्यासे अधिक होना ही नहीं है। उसका यह आग्रह है— और वह ठीक है— कि अन्य प्रकारकी सुविधाओंके होते हुए यह तो बिलकुल स्वाभाविक ही है कि जन्मसंख्याके बढ़नेके फलस्वरूप राष्ट्रीय उन्नति भी हो। वास्तवमें जो बात वह सिद्ध करना चाहता है, वह यह है कि जन्मसंख्याके बढ़ते जानेसे आर्थिक तथा नैतिक उन्नतिका रुकना लाजिमी नहीं है। जन्म-प्रतिशतकी हदतक हम हिन्दुस्तानियोंकी स्थिति फ्रांसकी स्थिति जैसी नहीं है। फिर भी कहा जा सकता है कि हिन्दुस्तानमें जन्म-प्रतिशतका बढ़ते जाना जर्मनीकी तरह हमारे राष्ट्रीय जीवनके लिए सहायक नहीं है। परन्तु मैं ब्यूरोके आँकड़ों, उसके सतर्क विचारों तथा निष्कर्षोंको दृष्टिमें रखते हुए हिन्दुस्तानकी परिस्थितिपर फिर कभी विचार करूँगा।
जर्मनीकी परिस्थितियोंपर, जहाँ कि जन्मका प्रतिशत अधिक है, विचार करनेके अनन्तर ब्यूरो कहता है:
क्या हम यह नहीं जानते कि यूरोपमें फ्रांस चतुर्थ स्थानपर है और राष्ट्रीय सम्पत्तिके लिहाजसे वह तृतीय स्थानवाले देशसे बहुत नीचे है? फ्रांस राष्ट्रकी अपनी सालाना आमदनी पच्चीस अरब फ्रेंककी है जबकि जर्मन लोगोंकी पचास अरब फ्रेंक है।··· हमारे राष्ट्रको पैंतीस वर्षोंमें, यानी १८७९ से १९१४ तक, चालीस अरब फ्रेंककी कमी सहनी पड़ी है। और उसकी सम्पत्ति बानवे अरब फ्रेंककी न रहकर बावन अरब फ्रेंककी रह गई है। देशके मस्त अंचलों में खेतों में काम करनेवाले आदमियों की कमी है और किन्हीं-किन्हीं जिलोंमें तो बूढ़ोंको छोड़कर आदमी ही दिखाई नहीं देते।
वह आगे लिखता है:
भ्रष्टाचार और प्रयत्नपूर्ण वंध्यत्वका अर्थ है समाजको स्वाभाविक शक्तियों को क्षीणता और सामाजिक जीवनमें वृद्ध पुरुषोंकी निर्वाध प्रधानता फ्रांसमें बच्चे तथा युवक मिलाकर एक हजारमें केवल १७० हैं, जबकि जर्मनीमें २२० और इंग्लैंडमें २१० हैं। युवा पुरुषोंकी अपेक्षा वृद्ध पुरुषोंका अनुपात ज्यादा है। इसके अतिरिक्त बचे हुए लोगोंमें भी अपने भ्रष्टाचरसे जवानीमें ही बुढ़ापा आ जानेके कारण नैतिक रूपसे तेजहत किसी जातिमें पाई जानेवाली सारीकी सारी कापुरुषता विद्यमान है।