पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/१७४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१४७. एक महान् हृदय

समाचारपत्रोंसे खबर लगी है कि कुमारी एमिली हॉबहाउस नहीं रहीं। वे एक बहुत ही नेक और बड़ी ही बहादुर स्त्री थीं। वे सदा व्यक्तिगत लाभ-हानि सोचे बिना सेवा करती थीं। उनकी सेवा ईश्वरापित समाजसेवा होती थी। वे एक ऊँचे अंग्रेज कुलमें उत्पन्न हुई थीं। वे अपने देशसे प्रेम करती थीं; और इसी कारण उसके द्वारा अन्यायका किया जाना उन्हें बर्दाश्त नहीं होता था। उन्होंने बोअर युद्धके अनौचित्य और उसमें निहित अत्याचारको समझ लिया था। वे पूरी तरह इंग्लैंडको गलतीपर मानती थीं। उन्होंने ऐसे समय में जब इंग्लैंड विक्षिप्त होकर लड़ रहा था, उस युद्धकी निन्दा अत्यन्त कड़ी भाषामें की। वे दक्षिण आफ्रिका गई और वहाँ उन शिविर कारागारोंके खड़े किये जाने तथा उनमें पराजित वीरोंके बाल-बच्चोंको जबर्दस्ती लाकर रखनेकी पशुताका उन्होंने घोर विरोध किया, जिनको लॉर्ड किचनरने युद्ध में विजय प्राप्त करनेके लिए आवश्यक ठहराया था। उसी समय विलियम स्टेडने भी अंग्रेजोंकी पराजयके लिए गिरजोंमें प्रार्थना सभाओंका आयोजन किया था। यद्यपि एमिली हॉबहाउस शरीरसे दुर्बल थीं, फिर भी वे शारीरिक असुविधाओंका कुछ भी खयाल न करके दुबारा दक्षिण आफ्रिका गई और वहाँ उन्होंने अपने प्रति अपमान तथा उससे भी गये-गुजरे बर्तावका जोखिम उठाया। वे वहाँ कैद कर ली गई और उन्हें वापस देश भेज दिया गया। इस सबको उन्होंने एक सच्ची बहादुर स्त्रीकी भाँति सहन किया। उन्होंने बोअर जातिकी स्त्रियोंको ढाढस बँधाया और कहा कि उन्हें आशा तो किसी भी हालतमें नहीं छोड़नी है। उन्होंने उनसे यह भी कहा कि यद्यपि इंग्लैंड मदमें चूर दिखाई देता है, तथापि वहाँके अनेक पुरुषों तथा स्त्रियोंमें बोअर लोगोंके प्रति सहानुभूति है और किसी न किसी दिन उनकी बात सुनी जायेगी। यही हुआ भी। सर हेनरी कैम्बेल बैनरमेन आम चुनावमें जबर्दस्त बहुमतसे लिबरल दलके नेता चुने गये और बोअर लोगोंकी युद्धमें हुई क्षतिकी यथासम्भव पूर्ति की गई।

युद्धकी समाप्तिपर, उन दिनों जबकि दक्षिण आफ्रिकाका सत्याग्रह जारी था मुझे कुमारी हॉबहाउससे परिचित होनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। हमारे परिचयने धीरे-धीरे आजीवन मैत्रीका रूप ले लिया। हिन्दुस्तानियों तथा दक्षिण आफ्रिकाकी सरकारके बीच १९१४ में जो समझौता हुआ, उसमें उनका कोई कम हाथ न था। उन दिनों वे जनरल बोथाकी मेहमान थीं। जनरल बोथाने कई बार मुलाकात विषयक मेरे प्रस्तावोंपर टाल-मटोल की और हर मरतबा 'गृह सचिव के सामने अपनी बात पेश करनेको कहा। परन्तु कुमारी हॉबहाउसने जनरल बोथासे आग्रह किया कि वे मुझसे मिलें। उन्होंने केपटाउनमें जनरल साहबके निवास स्थानपर जनरलसे मेरी मुलाकातका प्रबन्ध कराया और जनरल बोथाकी पत्नी तथा स्वयं कु० हॉबहाउस वहाँ उपस्थित रहीं। बोअर लोगोंपर उनके नामका बड़ा प्रभाव था। उन्होंने अपने इस सारे प्रभावको हिन्दुस्तानी दावेके पक्षमें लगाकर मेरा मार्ग सरल बना दिया था। जब मैं हिन्दुस्तान