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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं आपके प्रश्नोंको इसलिए वापस भेजता हूँ कि आपको उनसे मेरे उत्तर समझने में सहायता मिले।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८३३) की फोटो-नकलसे।

१३९. पत्र : नौतमलाल एम० खण्डेरियाको

आश्रम
११ जुलाई, १९२६

आपका पत्र[१] मिला। यदि आप जराती [ मूल ] में पर्याप्त रस पाते हैं तो खासी अच्छी अंग्रेजी जाननेवाले बहुतसे लोगोंने भी महादेवके अनुवादकी बड़ी प्रशंसा की है। अतः मैं परिवर्तन करनेकी कोई आवश्यता नहीं देखता।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १०९४१) की माइक्रोफिल्मसे।

१४०. पत्र : अम्बालाल साराभाईको

आश्रम
११ जुलाई, १९२६

सुज्ञ भाईश्री,

मुझे आपका लम्बा पत्र मिला। मैंने वह ध्यानपूर्वक पूरा पढ़ लिया है। आपने पत्र लिखा, सो ठीक ही किया। मुझे यह बात बहुत अच्छी लगी; क्योंकि पत्रमें आपने अपने हृदयके उद्गार प्रकट किये हैं। दूसरे आपने मुझे अपने विचार सम्यक् चिन्तनके बाद व्यवस्थित रूपमें लिखकर भेजे हैं। इन्हें मैं मैत्रीका लक्षण मानता हूँ। इस प्रकार मैं हर दृष्टिसे आपके पत्रका स्वागत करता हूँ। मैं इसका उत्तर गुजराती में दे रहा हूँ, क्योंकि मैं एक गुजराती भाषीको अंग्रेजीमें उत्तर देनेका साहस नहीं कर सकता। मैं इसे बोलकर लिखवा रहा हूँ, क्योंकि आपको मेरी लिखावट पढ़नेमें कठिनाई होगी, दूसरे उससे डाक्टरके इस निर्देशका भंग भी होगा कि मैं हाथसे लिखनेका काम यथासम्भव कम करूँ । आप विश्वास रखें कि आपके विषयमें मेरी

  1. श्री खण्डेरियाने १८ जून, १९२६ के अपने पत्र में सुझाव दिया था कि गांधीजी की आत्मकथाका, जो धारावाहिक रूपमें यंग इंडिया में प्रकाशित हो रही थी, अंग्रेजी अनुवाद वालजी गोविन्दजी देसाई करें तो अच्छा हो।